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भ्रमरगीत-सार |
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१४४ |
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राग बिहागरो |
राग बिहागरो |
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ऊधो जू ! मैं तिहारे चरनन लागौं बारक या ब्रज करबि भाँवरी। |
ऊधो जू ! मैं तिहारे चरनन लागौं बारक या ब्रज करबि भाँवरी। |
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निसि न नींद आवै, |
निसि न नींद आवै, दिन न भोजन भावै, मग जोवत भई दृष्टि झाँवरी॥ |
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बहै वृंदावन स्याम सघन बन, वहै सुभग सरि |
बहै वृंदावन स्याम सघन बन, वहै सुभग सरि साँवरी। |
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एक स्याम बिनु स्याम न भावै सुधि न रही जैसे वकत |
एक स्याम बिनु स्याम न भावै सुधि न रही जैसे वकत बावरी॥ |
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. (१) कागर = कागज । (२) : बवनन कहियो= इससे जवानों ही |
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कहना । (३) झार = अग्नि की ज्वालाः। (४) घरनाउ = घदनई, बाँस में |
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उलटे घड़े बाँधकर बनाई हुई नाव। |
(१) कागर=कागज। (२) बचनन कहियो=इससे जबानी ही कहना। (३) झार=अग्नि की ज्वाला। (४) घरनाउ=घड़नई, बाँस में उलटे घड़े बाँधकर बनाई हुई नाव। |