"पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२११": अवतरणों में अंतर
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<Poem>{{block center|{{gap|3em}}स्याम को यहै परेखो आवै<Ref>(३) यहै परेखो आवै=यही बात मन में सोचती हूँ।</ref>। |
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}स्याम को यहै परेखो आवै<Ref>(३) यहै परेखो आवै=यही बात मन में सोचती हूँ।</ref>। |
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कत वह प्रीति चरन जावक कृत<Ref> |
कत वह प्रीति चरन जावक कृत<Ref>(४) कृत=किया, बनाया।</ref>, अब कुब्जा मन भावै॥ |
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तब कत पानि धयो गोबर्द्धन, कत ब्रजपतिहि छड़ावै? |
तब कत पानि धयो गोबर्द्धन, कत ब्रजपतिहि छड़ावै? |
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कत वह वेनु अधर मोहन धरि लै लै नाम बुलावै? |
कत वह वेनु अधर मोहन धरि लै लै नाम बुलावै? |