"पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२०९": अवतरणों में अंतर
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) |
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बिरह-ताप को दवा देखियत चहुं दिसि लाय दए। |
बिरह-ताप को दवा देखियत चहुं दिसि लाय दए। |
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अब धौं कहा कियो चाहत हैं, सोंचत नाहिंन ए॥ |
अब धौं कहा कियो चाहत हैं, सोंचत नाहिंन ए॥ |
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परमारथी ज्ञान< |
परमारथी ज्ञान<ref>(६)परमारथी ज्ञान=पारमार्थिक ज्ञान, ब्रह्मज्ञान।</ref> उपदेसत बिरहिन प्रेम-रए<Ref>(७)रए=रंगे।</ref>। |
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कैसे जियहि स्याम विनु सूरज चुम्बक मेघ गए॥३४०॥}}</poem> |
कैसे जियहि स्याम विनु सूरज चुम्बक मेघ गए॥३४०॥}}</poem> |
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<Poem>{{block center|{{gap|3em}}या ब्रज सगुन-दीप<Ref>(८)सगुन-दीप=सगुण ज्योति को जगानेवाला दीपक।</ref> परगास्यो। |
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}या ब्रज सगुन-दीप<Ref>(८)सगुन-दीप=सगुण ज्योति को जगानेवाला दीपक।</ref> परगास्यो। |