"पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२०९": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा):पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा):
पंक्ति १२: पंक्ति १२:
बिरह-ताप को दवा देखियत चहुं दिसि लाय दए।
बिरह-ताप को दवा देखियत चहुं दिसि लाय दए।
अब धौं कहा कियो चाहत हैं, सोंचत नाहिंन ए॥
अब धौं कहा कियो चाहत हैं, सोंचत नाहिंन ए॥
परमारथी ज्ञान<Ref>(६)परमारथी ज्ञान=पारमाथिंक ज्ञान, ब्रह्मज्ञान।</ref> उपदेसत बिरहिन प्रेम-रए<Ref>(७)रए=रंगे।</ref>।
परमारथी ज्ञान<ref>(६)परमारथी ज्ञान=पारमार्थिक ज्ञान, ब्रह्मज्ञान।</ref> उपदेसत बिरहिन प्रेम-रए<Ref>(७)रए=रंगे।</ref>।
कैसे जियहि स्याम विनु सूरज चुम्बक मेघ गए॥३४०॥}}</poem>
कैसे जियहि स्याम विनु सूरज चुम्बक मेघ गए॥३४०॥}}</poem>
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}या ब्रज सगुन-दीप<Ref>(८)सगुन-दीप=सगुण ज्योति को जगानेवाला दीपक।</ref> परगास्यो।
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}या ब्रज सगुन-दीप<Ref>(८)सगुन-दीप=सगुण ज्योति को जगानेवाला दीपक।</ref> परगास्यो।