"पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२०९": अवतरणों में अंतर

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<Poem>{{block center|{{gap|3em}}आए नँदनन्दन के नेव।
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}आए नँदनन्दन के नेव<Ref>(१)नेव=नायब, मंत्री।</ref>।
गोकुल आय जोग बिस्ताप्यो, भली तुम्हारी टेव॥
गोकुल आय जोग बिस्ताप्यो, भली तुम्हारी टेव॥
जब बृन्दाबन रास रच्यो हरि तबहि कहाँ तू हेव।
जब बृन्दाबन रास रच्यो हरि तबहि कहाँ तू हेव<Ref>(२)हेव=ह्यो, तू था।</ref>।
अब जुवतिन को जोग सिखावत, भस्म अधारी सेव॥
अब जुवतिन को जोग सिखावत, भस्म अधारी सेव॥
हम लगि तुम क्यों यह मत ठान्यो ज्यों जोगिन को भोग।
हम लगि तुम क्यों यह मत ठान्यो ज्यों जोगिन को भोग<Ref>(३)जोगिन को भोग=जैसे योगियों के लिए भोग वैसे ही हमारे लिए योग।</ref>।
सूरदास प्रभु सुनत अधिक दुख, आतुर विरह-बियोग॥३३१॥}}</poem>
सूरदास प्रभु सुनत अधिक दुख, आतुर विरह-बियोग॥३३१॥}}</poem>
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}मनौ दोउ एकहि मते भए।
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}मनौ दोउ एकहि मते भए।
ऊधो अरु अक्रूर बधिक दोउ ब्रज आखेट ठए॥
ऊधो अरु अक्रूर बधिक दोउ ब्रज आखेट ठए<Ref>(४)ठए=ठाना।</ref>॥
बचन-पास बाँधे माधव-मृग, उनरत घालि लए।
बचन-पास बाँधे माधव-मृग, उनरत<Ref>(५)उनरत=उछलते हुए।</ref> घालि लए।
इनहीं हती मृगी-गोपोजन सायक-ज्ञान हए॥
इनहीं हती मृगी-गोपोजन सायक-ज्ञान हए॥
बिरह-ताप को दवा देखियत चहुं दिसि लाय दए।
बिरह-ताप को दवा देखियत चहुं दिसि लाय दए।
अब धौं कहा कियो चाहत हैं, सोंचत नाहिंन ए॥
अब धौं कहा कियो चाहत हैं, सोंचत नाहिंन ए॥
परमारथी ज्ञान उपदेसत बिरहिन प्रेम-रए।
परमारथी ज्ञान<Ref>(६)परमारथी ज्ञान=पारमाथिंक ज्ञान, ब्रह्मज्ञान।</ref> उपदेसत बिरहिन प्रेम-रए<Ref>(७)रए=रंगे।</ref>।
कैसे जियहि स्याम विनु सूरज चुम्बक मेघ गए॥३४०॥}}</poem>
कैसे जियहि स्याम विनु सूरज चुम्बक मेघ गए॥३४०॥}}</poem>
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}या ब्रज सगुन-दीप परगास्यो।
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}या ब्रज सगुन-दीप<Ref>(८)सगुन-दीप=सगुण ज्योति को जगानेवाला दीपक।</ref> परगास्यो।
सुनि ऊधो ! भृकुटो त्रिबेदि तर निसिदिन प्रगट अभास्यो॥
सुनि ऊधो ! भृकुटो त्रिबेदि<Ref>(९)त्रिवेदि=त्रिपाई, चौकी</ref> तर निसिदिन प्रगट अभास्यो॥
सब के उर-सरवनि सनेह भरि सुमन तिली को बास्यो।}}</poem>
सब के उर-सरवनि<Ref>(१०)उर-सरवनि=हृदय रूपी शराब या पात्र।</ref> सनेह भरि सुमन तिली को बास्यो।}}</poem>

(१) नेव=नायब, मंत्री। (२) हेव=ह्यो, तू था। (३) जोगिन को भोग=जैसे योगियों के लिए भोग वैसे ही हमारे लिए योग।
(४) ठए=ठाना। (५)उनरत=उछलते हुए। (६) परमारथी ज्ञान=पारमाथिंक ज्ञान, ब्रह्मज्ञान। (७) रए=रंगे। (८) सगुन-दीप=सगुण ज्योति को जगानेवाला दीपक। (९) त्रिवेदि=त्रिपाई, चौकी (१०) उर-सरवनि=हृदय रूपी शराब या पात्र।
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