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रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) No edit summary |
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) |
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<Poem>{{block center|{{gap|3em}}आए नँदनन्दन के |
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}आए नँदनन्दन के नेव<Ref>(१)नेव=नायब, मंत्री।</ref>। |
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गोकुल आय जोग बिस्ताप्यो, भली तुम्हारी टेव॥ |
गोकुल आय जोग बिस्ताप्यो, भली तुम्हारी टेव॥ |
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जब बृन्दाबन रास रच्यो हरि तबहि कहाँ तू |
जब बृन्दाबन रास रच्यो हरि तबहि कहाँ तू हेव<Ref>(२)हेव=ह्यो, तू था।</ref>। |
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अब जुवतिन को जोग सिखावत, भस्म अधारी सेव॥ |
अब जुवतिन को जोग सिखावत, भस्म अधारी सेव॥ |
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हम लगि तुम क्यों यह मत ठान्यो ज्यों जोगिन को |
हम लगि तुम क्यों यह मत ठान्यो ज्यों जोगिन को भोग<Ref>(३)जोगिन को भोग=जैसे योगियों के लिए भोग वैसे ही हमारे लिए योग।</ref>। |
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सूरदास प्रभु सुनत अधिक दुख, आतुर विरह-बियोग॥३३१॥}}</poem> |
सूरदास प्रभु सुनत अधिक दुख, आतुर विरह-बियोग॥३३१॥}}</poem> |
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<Poem>{{block center|{{gap|3em}}मनौ दोउ एकहि मते भए। |
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}मनौ दोउ एकहि मते भए। |
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ऊधो अरु अक्रूर बधिक दोउ ब्रज आखेट |
ऊधो अरु अक्रूर बधिक दोउ ब्रज आखेट ठए<Ref>(४)ठए=ठाना।</ref>॥ |
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बचन-पास बाँधे माधव-मृग, उनरत घालि लए। |
बचन-पास बाँधे माधव-मृग, उनरत<Ref>(५)उनरत=उछलते हुए।</ref> घालि लए। |
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इनहीं हती मृगी-गोपोजन सायक-ज्ञान हए॥ |
इनहीं हती मृगी-गोपोजन सायक-ज्ञान हए॥ |
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बिरह-ताप को दवा देखियत चहुं दिसि लाय दए। |
बिरह-ताप को दवा देखियत चहुं दिसि लाय दए। |
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अब धौं कहा कियो चाहत हैं, सोंचत नाहिंन ए॥ |
अब धौं कहा कियो चाहत हैं, सोंचत नाहिंन ए॥ |
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परमारथी ज्ञान उपदेसत बिरहिन प्रेम- |
परमारथी ज्ञान<Ref>(६)परमारथी ज्ञान=पारमाथिंक ज्ञान, ब्रह्मज्ञान।</ref> उपदेसत बिरहिन प्रेम-रए<Ref>(७)रए=रंगे।</ref>। |
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कैसे जियहि स्याम विनु सूरज चुम्बक मेघ गए॥३४०॥}}</poem> |
कैसे जियहि स्याम विनु सूरज चुम्बक मेघ गए॥३४०॥}}</poem> |
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<Poem>{{block center|{{gap|3em}}या ब्रज सगुन-दीप परगास्यो। |
<Poem>{{block center|{{gap|3em}}या ब्रज सगुन-दीप<Ref>(८)सगुन-दीप=सगुण ज्योति को जगानेवाला दीपक।</ref> परगास्यो। |
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सुनि ऊधो ! भृकुटो त्रिबेदि तर निसिदिन प्रगट अभास्यो॥ |
सुनि ऊधो ! भृकुटो त्रिबेदि<Ref>(९)त्रिवेदि=त्रिपाई, चौकी</ref> तर निसिदिन प्रगट अभास्यो॥ |
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सब के उर-सरवनि सनेह भरि सुमन तिली को बास्यो।}}</poem> |
सब के उर-सरवनि<Ref>(१०)उर-सरवनि=हृदय रूपी शराब या पात्र।</ref> सनेह भरि सुमन तिली को बास्यो।}}</poem> |
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(१) नेव=नायब, मंत्री। (२) हेव=ह्यो, तू था। (३) जोगिन को भोग=जैसे योगियों के लिए भोग वैसे ही हमारे लिए योग। |
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(४) ठए=ठाना। (५)उनरत=उछलते हुए। (६) परमारथी ज्ञान=पारमाथिंक ज्ञान, ब्रह्मज्ञान। (७) रए=रंगे। (८) सगुन-दीप=सगुण ज्योति को जगानेवाला दीपक। (९) त्रिवेदि=त्रिपाई, चौकी (१०) उर-सरवनि=हृदय रूपी शराब या पात्र। |
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