"विकिस्रोत:आज का पाठ/१५ अगस्त": अवतरणों में अंतर

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-->{{featured download|गुप्त धन 1/दुनिया का सबसे अनमोल रतन}}<!--
-->[[चित्र:Premchand.jpg|प्रेमचंद|left|60px|]][[File:Indian-Flag.png|thumb|भारत का तिरंगा झंडा]][[File:Blood drop.svg|thumb|अनमोल रत्न|60 px]]'''[[गुप्त धन 1/दुनिया का सबसे अनमोल रतन|दुनिया का सबसे अनमोल रतन]]''' [[लेखक:प्रेमचंद|प्रेमचंद]] द्वारा १९०७ ई. में रचित कहानी है, जो इलाहाबाद के '''हंस प्रकाशन''' द्वारा प्रकाशित कहानी-संग्रह "[[गुप्त धन 1]]" में संग्रहित है।
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"जवाँमर्द की आवाज़ मद्धिम हो गयी, अंग ढीले पड़ गये, ख़ून इतना ज्यादा बहा कि खुद ब खुद बन्द हो गया, रह-रहकर एकाध बूँद टपक पड़ता था। आखिरकार सारा शरीर बेदम हो गया, दिल की हरकत बन्द हो गयी और आँखें मुंद गयीं। दिलफ़िगार ने समझा अब काम तमाम हो गया कि मरनेवाले ने धीमे से कहा––भारतमाता की जय। और उसके सीने से ख़ून का आखिरी कतरा निकल पड़ा। एक सच्चे देशप्रेमी और देशभक्त ने देशभक्ति का हक़ अदा कर दिया। दिलफ़िगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसके दिल ने कहा, बेशक दुनिया में ख़ून के इस क़तरे से ज्यादा अनमोल चीज़ कोई नहीं हो सकती।"..."([[गुप्त धन 1/दुनिया का सबसे अनमोल रतन|पूरा पढ़ें]])