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रूय का जलवा दिखाकर फिर नज़रों से ओझल हो गयी। एक बिजली थी कि कौंधी और फिर बादलों के परदे में छिप गयी। अभी दिलफ़िगार के होश-हवास ठिकाने पर न आने पाये थे कि चोबदार ने मुलायमियत से उसका हाथ पकड़कर यार के कूचे से उसको निकाल दिया और फिर तीसरी बार वह प्रेम का पुजारी निराशा के अथाह समुन्दर में ग़ोता खाने लगा।

गुप्त धन
दिलफ़िगार का हियाव छूट गया। उसे यक़ीन हो गया कि मैं दुनिया में इसी तरह नाशाद और नामुराद मर जाने के लिए पैदा किया गया था और अब इसके सिवा और कोई चारा नहीं कि किसी पहाड़ पर चढ़कर नीचे कूद पड़ूँ ताकि माशूक़ के जुल्मों की फ़रियाद करने के लिए एक हड्डी भी बाक़ी न रहे। वह दीवाने की तरह उठा और गिरता-पड़ता एक गगनचुम्बी पहाड़ की चोटी पर जा पहुँचा। किसी और समय वह ऐसे ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने का साहस न कर सकता था मगर इस वक़्त जान देने के जोश में उसे वह पहाड़ एक मामूली टेकरी से ज्यादा ऊँचा न नज़र आया। करीब था कि वह नीचे कूद पड़े कि हरे-हरे कपड़े पहने हुए और हरा अमामा बाँधे एक बुज़ुर्ग एक हाथ में तसबीह और दूसरे हाथ में लाठी लिये बरामद हुए और हिम्मत बढ़ानेवाले स्वर में बोले––दिलफ़िगार, नादान दिलफ़िगार, यह क्या बुज़दिलों जैसी हरकत है! तू मुहब्बत का दावा करता है और तुझे इतनी भी ख़बर नहीं कि मजबूत इरादा मुहब्बत के रास्ते की पहली मंजिल है? मर्द बन और यों हिम्मत न हार। पूरब की तरफ़ एक देश है जिसका नाम हिन्दोस्तान है, वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी होगी।
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रूप का जलवा दिखाकर फिर नजरों से ओझल हो गयी। एक विजली थी कि
यह कहकर हज़रते ख़िज्र गायब हो गये। दिलफ़िगार ने शुक्रिये की नमाज़ अदा की और ताज़ा हौसले, ताज़ा जोश और अलौकिक सहायता का सहारा पाकर खुश-खुश पहाड़ से उतरा और हिन्दोस्तान की तरफ चल पड़ा।
कौंधी और फिर बादलों के परदे में छिप गयी। अभी दिलफ़िगार के होश-हवास

ठिकाने पर न आने पाये थे कि चोबदार ने मुलायमियत से उसका हाथ पकड़कर
मुद्दतों तक काँटे से भरे हुए जंगलों, आग बरसानेवाले रेगिस्तानों, कठिन घाटियों और अलंघ्य पर्वतों को तय करने के बाद दिलफ़िगार हिन्द की पाक सरजमीन में दाख़िल हुआ और एक ठंडे पानी के सोते में सफ़र की तकलीफें धोकर थकान के मारे नदी के किनारे लेट गया। शाम होते-होते वह एक चटियल मैदान में पहुँचा जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें बिना कफ़न के पड़ी हुई थीं। चील-कौए और वहशी दरिन्दे मरे पड़े थे और सारा मैदान ख़ून से लाल हो रहा था। यह डरावना दृश्य देखते ही दिलफ़िगार का जी दहल गया। या खुदा, किस मुसीबत में जान फँसी, मरनेवालों का कराहना, सिसकना और एड़ियाँ
पार के कूचे से उसको निकाल दिया और फिर तीसरी बार वह प्रेम का पुजारी
निराशा के अथाह समुन्दर में गोता खाने लगा।
दिलफ़िगार का हियाव छूट गया। उसे यकीन हो गया कि मैं दुनिया में इसी
तरह नाशाद और नामुराद मर जाने के लिए पैदा किया गया था और अब इसके
सिवा और कोई चारा नहीं कि किसी पहाड़ पर चढ़कर नीचे कूद पडू ताकि माशूक
के जुल्मों को फ़रियाद करने के लिए एक हड्डी भी बाक़ी न रहे। वह दोवाने की
तरह उठा और गिरता-पड़ता एक गगनचुम्बी पहाड़ की चोटी पर जा पहुँचा ।
किसी और समय बह ऐसे ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने का साहस न कर सकता था मगर
इस वक्त जान देने के जोश में उसे वह पहाड़ एक मामूली टेकरी से ज्यादा ऊँचा
न नजर आया। करीब था कि वह नीचे कूद पड़े कि हरे-हरे कपड़े पहने हुए और
हा अमामा वाँथे एक बुजूर्ग एक हाथ में तसबीह और दूसरे हाथ में लाठी लिये
बरामद हुए और हिम्मत बड़ानेवाले स्वर में बोले-दिलफ़िगार, नादान दिलफ़िगार,
यह क्या बुजदिलों जैसी हरकत है ! तू मुहब्बत का दावा करता है और तुझे इतनी
भी खबर नहीं कि मजबूत इरादा मुहब्बत के रास्ते की पहली मंज़िल है ? मर्द बन
और यो हिम्मत न हार । पूरब की तरफ़ एक देश है जिसका नाम हिन्दोस्तान है,
वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी होगी।
यह कहकर हज़रते खिज्र गायब हो गये। दिलफ़िगार ने शुक्रिये की नमाज
अदा की और ताजा हौसले, ताज़ा जोश और अलौकिक सहायता का सहारा पाकर
खुश-खुश पहाड़ से उतरा और हिन्दोस्तान की तरफ चल पड़ा।
मुद्दतों तक कांटे से भरे हुए कों, आग बर वाले रेगिस्तानों, कठिन
घाटियों और अलंध्य पर्वतों को तय करने के बाद दिलफ़िगार हिन्द को पाक
सरजमीन में दाखिल हुआ और एक ठंडे पानी के सोते में सफ़र की तकलीफें
घोकर थकान के मारे नदी के किनारे लेट गया। शाम होते-होते वह एक बटियल
मैदान में पहुँचा जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें बिना कफ़न के पड़ी हुई
थीं। चील-कौए और वहशी दरिन्दे मरे पड़े थे और सारा मैदान खून से लाल हो
रहा था। यह डरावना दृश्य देखते ही दिलफ़िगार का जी दहल गया। या खुदा,
किस मुसीबत में जान फंसी, मरनेवालों का कराहना, सिसकना और एड़ियाँ