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दुनिया का सबसे अनमोल रतन |
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एक रोज़ वह शाम के वक्त किसी नदी के किनारे ख़स्ताहाल पड़ा हुआ था। बेख़ुदी के नशे से चौंका तो क्या देखता है कि चन्दन की एक चिता बनी हुई है और उस पर एक युवती सुहाग के जोड़े पहने सोलहो सिंगार किये बैठी है। उसकी जाँघ पर उसके प्यारे पति का सर है। हज़ारों आदमी गोल बाँधे खड़े हैं और फूलों की बरखा कर रहे हैं। यकायक चिता में से खुद-ब-खुद एक लपक उठी। सती का चेहरा उस वक्त एक पवित्र भाव से आलोकित हो रहा था, चिता की पवित्र लपटें उसके गले से लिपट गयीं और दम के दम में वह फूल-सा शरीर राख का ढेर हो गया। प्रेमिका ने अपने को प्रेमी पर न्योछावर कर दिया और दो प्रेमियों के सच्चे, पवित्र, अमर प्रेम की अन्तिम लीला आँख से ओझल हो गयी। जब सब लोग अपने घरों को लौटे तो दिलफ़िगार चुपके से उठा और अपने चाक-दामन कुरते में यह राख का ढेर समेट लिया और इस मुट्ठी भर राख को दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ समझता हुआ, सफलता के नशे में चूर, यार के कूचे की तरफ़ चला। अबकी ज्यों-ज्यों वह अपनी मंजिल के क़रीब आता था, उसकी हिम्मत बढ़ती जाती थी। कोई उसके दिल में बैठा हुआ कह रहा था––अबकी तेरी जीत है और इस ख़याल ने उसके दिल को जो-जो सपने दिखाये उनकी चर्चा व्यर्थ है। आखिरकार वह शहर मीनोसवाद में दाख़िल हुआ और दिलफ़रेब को ऊँची ड्योढ़ी पर जाकर ख़बर दी कि दिलफ़िगार सुर्ख-रू होकर लौटा है, और हुजूर के सामने आना चाहता है। दिलफ़रेब ने जाँबाज आशिक को फ़ौरन दरबार में बुलाया और उस चीज़ के लिए, जो दुनिया को सबसे बेशक़ीमत चीज़ थी, हाथ फैला दिया। दिलफ़िगार ने हिम्मत करके उसकी चाँदी जैसी कलाई को चूम लिया और मुट्ठी भर राख को उसकी हथेली में रखकर सारी कैफ़ियत दिल को पिघला देनेवाले लफ़्ज़ों में कह सुनायी और अपनी सुन्दर प्रेमिका के होंठों से अपनी क़िस्मत का मुबारक फैसला सुनने के लिए इन्तज़ार करने लगा। दिलफ़रेब ने उस मुट्ठी भर राख को आँखों से लगा लिया और कुछ देर तक विचारों के सागर में डूबे रहने के बाद बोली––ऐ जान निछावर करनेवाले आशिक़ दिलफ़िगार! बेशक यह राख जो तू लाया है, जिसमें लोहे को सोना कर देने की सिफ़त है, दुनिया की बहुत बेशकीमत चीज़ है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमन्द हूँ कि तूने ऐसी अनमोल भेंट दी। मगर दुनिया में इससे भी ज्यादा अनमोल कोई चीज़ है, जा उसे तलाश कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से दुआ करती हूँ कि खुदा तुझे कामयाब करे। यह कहकर वह सुनहरे परदे से बाहर आयी और माशूक़ाना अदा से अपने |
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एक रोज वह शाम के वक्त किसी नदी के किनारे खस्ताहाल पड़ा हुआ था। |
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वेखुदी के नशे से चौंका तो क्या देखता है कि चन्दन को एक चिता बनी हुई है |
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और उस पर एक युवती सुहाग के जोड़े पहने सोलहो सिंगार किये बैठी है। |
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उसको जाँघ पर उसके प्यारे पति का सर है। हजारों आदमी गोल बाँधे खड़े हैं |
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और फूलों की बरखा कर रहे हैं। यकायक चिता में से खुद-ब-खुद एक लपक |
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उठी। सती का चेहरा उस वक्त एक पवित्र भाव से आलोकित हो रहा था, |
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चिता की पवित्र लपटें उसके गले से लिपट गयीं और दम के दम में वह फूल-सा |
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शरीर राख का ढेर हो गया। प्रेमिका ने अपने को प्रेमी पर न्योछावर कर दिया और |
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दो प्रेमियों के सच्चे, पवित्र, अमर प्रेम की अन्तिम लीला आँख से ओझल हो गयी। |
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जब सब लोग अपने घरों को लौटे तो दिलफ़िगार चुपके से उठा और अपने चाक- |
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दामन कुरते में यह राख का ढेर समेट लिया और इस मुट्ठी भर राख को दुनिया |
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को सबसे अनमोल चीज' समझता हुआ, सफलता के नशे में चूर, यार के कूचे |
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की तरफ़ चला। अबको ज्यों-ज्यों वह अपनी मंजिल के करीब आता था, उसकी |
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हिम्मत बढ़ती जाती थी। कोई उसके दिल में बैठा हुआ कह रहा था--अबकी तेरी |
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जीत है और इस खयाल ने उसके दिल को जो-जो सपने दिखाये उनको चर्चा व्यर्थ |
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है। आखिरकार वह शहर मोनोसवाद में दाखिल हुआ और दिलफरेब को ऊँत्रो |
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ड्योढ़ी पर जाकर खबर दी कि दिलफ़िगार सुर्ख-रू होकर लौटा है, और हुजूर |
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के सामने आना चाहता है। दिलफ़रेब ने जाँबाज आशिक को फ़ौरन दरबार में |
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बुलाया और उस चीज़ के लिए, जो दुनिया को सबसे वेशकीमत चीज़ थी, हाथ |
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फैला दिया। दिलफ़िगार ने हिम्मत करके उसको चाँदी जैसी कलाई को चूम लिया |
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और मुट्ठी भर राख को उसकी हथेली में रख कर सारी कैफियत दिल को पिघला |
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देनेवाले लफ़्ज़ों में कह सुनायी और अपनी सुन्दर प्रेमिका के होंठों से अपनी किस्मत |
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का मुबारक फैसला सुनने के लिए इन्तजार करने लगा। दिलफ़रेब ने उस मुट्ठी |
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भर राख को आँखों से लगा लिया और कुछ देर तक विचारों के सागर में डूबे रहने |
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के बाद बोली-ऐ जान निछावर करनेवाले आशिक़ दिलफ़िगार ! बेशक यह |
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राख जो तू लाया है, जिसमें लोहे को सोना कर देने की सिफ़त है, दुनिया को बहुत |
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बेशकीमत चीज़ है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमन्द हूँ कि तूने ऐसी अनमोल |
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भेट दी। मगर दुनिया में इससे भी ज्यादा अनमोल कोई चीज़ है, जा उसे तलाश |
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कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से दुआ करतो हूँ कि खुदा तुझे कामयाब |
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करे। यह कहकर वह सुनहरे परदे से बाहर आयी और माशूकाना अदा से अपने |