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सकता हूँ। मगर दुनिया की सबसे अनमोल चीज़! यह मेरी कल्पना की उड़ान से बहुत ऊपर है।
गुप्त धन

सकता हूँ। मगर दुनिया की सबसे अनमोल चीज़! यह मेरी कल्पना की उड़ान
आसमान पर तारे निकल आये थे। दिलफ़िगार यकायक खुदा का नाम लेकर उठा और एक तरफ को चल खड़ा हुआ। भूखा-प्यासा, नंगे बदन, थकन से चूर, वह बरसों वीरानों और आबादियों की ख़ाक छानता फिरा, तलवे काँटों से छलनी हो गये, शरीर में हड्डियाँ ही हड्डियाँ दिखायी देने लगीं मगर वह चीज़, जो दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ थी, न मिली और न उसका कुछ निशान
से बहुत ऊपर है।
मिला।
आसमान पर तारे निकल आये थे। दिलफ़िगार यकायक खुदा का नाम लेकर

उठा और एक तरफ को चल खड़ा हुआ। भूखा-प्यासा, नंगे बदन, थकन से चूर,
एक रोज़ वह भूलता-भटकता एक मैदान में जा निकला, जहाँ हजारों आदमी गोल बाँधे खड़े थे। बीच में कई अमामे और चोग़ेवाले दढ़ियल क़ाज़ी अफ़सरी शान से बैठे हुए आपस में कुछ सलाह-मशविरा कर रहे थे और इस जमात से ज़रा दूर पर एक सूली खड़ी थी। दिलफ़िगार कुछ तो कमज़ोरी की वजह से और कुछ यहाँ की कैफ़ियत देखने के इरादे से ठिठक गया। क्या देखता है, कि कई लोग नंगी तलवारें लिये, एक क़ैदी को, जिसके हाथ-पैर में ज़ंजीरें थीं, पकड़े चले आ रहे हैं। सूली के पास पहुँचकर सब सिपाही रुक गये और क़ैदी को हथकड़ियाँ-बेड़ियाँ सब उतार ली गयीं। इस अभागे आदमी का दामन सैकड़ों बेगुनाहों के खून के छींटों से रंगीन था, और उसका दिल नेकी के ख़याल और रहम की आवाज़ से ज़रा भी परिचित न था। उसे काला चोर कहते थे। सिपाहियों ने उसे सूली के तख़्ते पर खड़ा कर दिया, मौत की फाँसी उसकी गर्दन में डाल दी और जल्लादों ने तख्ता खींचने का इरादा किया कि वह अभागा मुजरिम चीख़कर बोला––ख़ुदा के वास्ते मुझे एक पल के लिए फाँसी से उतार दो ताकि अपने दिल की आख़िरी आरज़ू निकाल लूं। यह सुनते ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया। लोग अचम्भे में आकर ताकने लगे। क़ाज़ियों ने एक मरनेवाले आदमी की अंतिम याचना को रद करना उचित न समझा और बदनसीब पापी काला चोर ज़रा देर के लिए फाँसी से उतार लिया गया।
वह बरसों वीरानों और आबादियों को खाक छानता फिरा, तलवे काँटों से छलनी

हो गये, शरीर में हड्डियाँ ही हड्डियाँ दिखायी देने लगीं मगर वह चीज,
इसी भीड़ में एक खूबसूरत भोला-भाला लड़का एक छड़ी पर सवार होकर अपने पैरों पर उछल-उछल फ़र्जी घोड़ा दौड़ा रहा था, और अपनी सादगी की दुनिया में ऐसा मगन था कि जैसे वह इस वक़्त सचमुच अरबी घोड़े का शहसवार है। उसका चेहरा उस सच्ची खुशी से कमल की तरह खिला हुआ था जो चन्द दिनों के लिए बचपन ही में हासिल होती है और जिसकी याद हमको मरते दम तक नहीं
जो दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ थी, न मिली और न उसका कुछ निशान
मिला।
एक रोज़ वह भूलता-भटकता एक मैदान में जा निकला, जहाँ हजारों आदमी
गोल बाँधे खड़े थे। बीच में कई अमामे और चोगेवाले दड़ियल क़ाज़ी अफ़सरी
शान से बैठे हुए आपस में कुछ सलाह-मशविरा कर रहे थे और इस जमात से
जरा दूर पर एक सूली खड़ी थी। दिलफ़िगार कुछ तो कमजोरी की वजह से और
कुछ यहाँ की कैफियत देखने के इरादे से ठिठक गया। क्या देखता है, कि कई
लोग नंगी तलवारें लिये, एक कैदी को, जिसके हाथ-पैर में जंजीरें थीं, पकड़े
चले आ रहे हैं। मूली के पास पहुँचकर सब सिपाही रुक गये और कैदी को हथकड़ियाँ-
बेड़ियाँ सब उतार ली गयीं। इस अभागे आदमी का दामन सैकड़ों बेगुनाहों के
खून के छींटों से रंगीन था, और उसका दिल नेकी के खयाल और रहम को आवाज से
ज़रा भी परिचित न था। उसे काला चोर कहते थे। सिपाहियों ने उसे सूलो के
तख्ते पर खड़ा कर दिया, मौत की फरसो उसकी गर्दन में डाल दो और जल्लादों ने
तख्ता खींचने का इरादा किया कि वह अभागा मुजरिम चोख कर बोला--खुदा
के वास्ते मुझे एक पल के लिए फाँसी से उतार दो ताकि अपने दिल की आखिरी
आरजू निकाल लूं। यह सुनते ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया। लोग अचस्में
में आकर ताकने लगे। काजियों ने एक मरनेवाले आदमो की अंतिम याचना को
रद करना उचित न समझा और बदनसीब पापी काला चोर जरा देर के लिए फाँसी
से उतार लिया गया।
इसी भीड़ में एक खूबसूरत भोला-भाला लड़का एक छड़ी पर सवार होकर
अपने पैरों पर उछल-उछल फ़र्जी घोड़ा दौड़ा रहा था, और अपनी सादगी की दुनिया
में ऐसा मगन था कि जैसे वह इस बात सचमुच अरबी घोड़े का शहसवार है ।
उसका चेहरा उस सच्ची खुशी से कमल की तरह खिला हुआ था जो चन्द दिनों
के लिए बचपन ही में हासिल होती है और जिसको याद हसको मरते दम तक नहीं