"पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/७७": अवतरणों में अंतर

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"पाकिस्तान क्या?"
"पाकिस्तान क्या?"


"पाकिस्तान माने मुसलमानी राज! काँग्रेस माने हिन्दू---राज।"
"पाकिस्तान माने मुसलमानी राज! काँग्रेस माने हिन्दू––राज।"


"अच्छा।"
"अच्छा।"
पंक्ति ९: पंक्ति ११:
"लेकिन एक बात तो बताओ खाँ साहब! जब कांग्रेस-राज हिन्दू-राज है तब मुसलमान उसकी तरफ से कैसे खड़े होते हैं?"
"लेकिन एक बात तो बताओ खाँ साहब! जब कांग्रेस-राज हिन्दू-राज है तब मुसलमान उसकी तरफ से कैसे खड़े होते हैं?"


"यह उनकी अकल और क्या कहा जाय। मुसलमान होकर हिन्दू-
"यह उनकी अकल और क्या कहा जाय। मुसलमान होकर हिन्दू-राज पसन्द कर रहे हैं।"
राज पसन्द कर रहे हैं।"


"यह तो बड़े ताज्जुब की बात है।"
"यह तो बड़े ताज्जुब की बात है।"


"खैर! ताज्जुब की यह दुनिया ही है। तुम मुसलिम लीग के
"खैर! ताज्जुब की यह दुनिया ही है। तुम मुसलिम लीग के आदमी को वोट देना। उनका नाम....है। याद रखना भूल न जाना।"
प्रादमी को वोट देना। उनका नाम है। याद रखना भूल न जाना।"


सब ने तीन-चार बार नाम को रट कर याद करने के पश्चा कहा---"यह अच्छा बता दिया खांँ साहब!"
सब ने तीन-चार बार नाम को रट कर याद करने के पश्चात् कहा––"यह अच्छा बता दिया खाँ साहब!"


प्रौढ़ व्यक्ति बोला--"मगर दारोगा जी तो हिन्दू हैं, वह तो नाराज न होंगे।"
प्रौढ़ व्यक्ति बोला––"मगर दारोगा जी तो हिन्दू हैं, वह तो नाराज न होंगे।"


"वह इस मामले में नहीं बोल सकते।"
"वह इस मामले में नहीं बोल सकते।"
पंक्ति २५: पंक्ति २५:
"अच्छा!"
"अच्छा!"


"हाँ! इनमें इतनी हिम्मत कहाँ? अभी कोई मुसलमान दारोगा
"हाँ! इनमें इतनी हिम्मत कहाँ? अभी कोई मुसलमान दारोगा होता तो देखते। यह हिम्मत मुसलमान में ही होती हैं। हाँ तो याद रखना।"
होता तो देखते। यह हिम्मत मुसलमान में ही होती हैं। हाँ तो याद रखना।"


"याद रक्खेंगे खाँ साहब!"
"याद रक्खेंगे खाँ साहब!"
पंक्ति ३४: पंक्ति ३३:
"अब जब आपका हुकुम लग गया तब गाँव वाले चाहे जो कहें।"
"अब जब आपका हुकुम लग गया तब गाँव वाले चाहे जो कहें।"


खाँ साहब तो यह पट्टी पढ़ा कर चल दिया। इधर इनमें खिचड़ी
खाँ साहब तो यह पट्टी पढ़ा कर चल दिया। इधर इनमें खिचड़ी पकने लगी।
पकने लगी।


"अब आयी मुसीबत!"
"अब आयी मुसीबत!"