"पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१४": अवतरणों में अंतर

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परन्तु ठाकुरजी तो रायसाहब की भक्ति से भली भांति परिचित थे। अतः रायसाहब की प्रार्थना से उनके चेहरे पर शिकन भी न आई।
परन्तु ठाकुरजी तो रायसाहब की भक्ति से भली भांति परिचित थे। अतः रायसाहब की प्रार्थना से उनके चेहरे पर शिकन भी न आई।


रायसाहब ने पुनः प्रार्थना की—"देखो तुम्हारे मनोरंजन के लिए हमने कितनी बढ़िया मण्डली बुलवाई है इसका तो कुछ ख्याल करो।"
रायसाहब ने पुनः प्रार्थना की––"देखो तुम्हारे मनोरंजन के लिए हमने कितनी बढ़िया मण्डली बुलवाई है इसका तो कुछ ख्याल करो।"


परन्तु ठाकुर जी की वही निर्निमेष दृष्टि तथा मुख पर मन्द मुस्कान।
परन्तु ठाकुर जी की वही निर्निमेष दृष्टि तथा मुख पर मन्द मुस्कान।


कीर्तन चल रहा था। निमंत्रित श्रोतागण झूम-झूम कर कीर्त्तन में योग दे रहे थे। उन्हें क्या पता कि रायसाहब के हृदय पर क्या बीत रही है। रायसाहब दाँत किटकिटा कर अपने अन्तरंग आदमियों से कहते थे। कितने असभ्य तथा दरिद्री हैं लोग! मना कर देने पर पाकर
कीर्त्तन चल रहा था। निमंत्रित श्रोतागण झूम-झूम कर कीर्त्तन में योग दे रहे थे। उन्हें क्या पता कि रायसाहब के हृदय पर क्या बीत रही है। रायसाहब दाँत किटकिटा कर अपने अन्तरंग आदमियों से कहते थे। कितने असभ्य तथा दरिद्री हैं लोग! मना कर देने पर आकर जमा हो गये––थोड़े से प्रसाद के लिए।
जमा हो गये—थोड़े से प्रसाद के लिए।


इस अवस्था में जन्म का समय आ गया। अभी तक द्वार बन्द था, जन्म हो जाने पर द्वार खुलने वाला था। पुजारी ने ठाकुरजी का जन्म
इस अवस्था में जन्म का समय आ गया। अभी तक द्वार बन्द था, जन्म हो जाने पर द्वार खुलने वाला था। पुजारी ने ठाकुरजी का जन्म करवाया! जन्म के समय रायसाहब के हृदय की धड़कन बढ़ गई––यह सोचकर कि अब द्वार खोलकर प्रसाद बाँटना होगा, देखो क्या बीतती है। कुछ भी हो ठाकुरजी ने इस समय अपने भक्त के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। वर्षा कर देते तो यह मुसीबत टल जाती।
करवाया! जन्म के समय रायसाहब के हृदय की धड़कन बढ़ गई—यह सोचकर कि अब द्वार खोलकर प्रसाद बाँटना होगा, देखो क्या बीतती है। कुछ भी हो ठाकुरजी ने इस समय अपने भक्त के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। वर्षा कर देते तो यह मुसीबत टल जाती।


सहसा द्वार खुलने के पहिले ही बूँदाबाँदी आरम्भ हो गई और जब द्वार खुलने का समय आया, तो मूसलाधार वर्षा प्रारम्भ हो गई।
सहसा द्वार खुलने के पहिले ही बूँदाबाँदी आरम्भ हो गई और जब द्वार खुलने का समय आया, तो मूसलाधार वर्षा आरम्भ हो गई।


रायसाहब प्रसन्न होकर बोले—"भक्त की टेर भगवान ने सुन ली—अब खोल दो द्वार!"
रायसाहब प्रसन्न होकर बोले––"भक्त की टेर भगवान ने सुन ली––अब खोल दो द्वार!"


परन्तु जैसे ही द्वार खुला कि जनता की भीड़ मन्दिर में घुस आई; आदमी पर आदमी गिरने लगा। कुछ लोग कीर्त्तन करने वालों पर गिरे—कीर्त्तन वाले बाजा और ढोलक उठाकर भागे।
परन्तु जैसे ही द्वार खुला कि जनता की भीड़ मन्दिर में घुस आई; आदमी पर आदमी गिरने लगा। कुछ लोग कीर्त्तन करने वालों पर गिरे––कीर्त्तन वाले बाजा और ढोलक उठाकर भागे।


रायसाहब तथा उनके कर्मचारी भीड़ को रोकने की चेष्टा कर रहे थे परन्तु पानी से बचने के लिए लोग पिले पड़ते थे।
रायसाहब तथा उनके कर्मचारी भीड़ को रोकने की चेष्टा कर रहे थे परन्तु पानी से बचने के लिए लोग पिले पड़ते थे।