"पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१३": अवतरणों में अंतर

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"इनमें से अधिकांश तो केवल प्रसाद लेने के लिए खड़े हैं, प्रसाद लेकर चले जायेंगे।"
"इनमें से अधिकांश तो केवल प्रसाद लेने के लिए खड़े हैं, प्रसाद लेकर चले जायेंगे।"


पंक्ति २७: पंक्ति २९:
रायसाहब सोचने लगे कि मण्डली बुलवा कर खामखाह एक मुसीबत मोल ले ली।
रायसाहब सोचने लगे कि मण्डली बुलवा कर खामखाह एक मुसीबत मोल ले ली।


कीर्तन प्रारम्भ हुआ; परन्तु रायसाहब को इस समय उसके प्रति कोई अनुराग नहीं था। उनका ध्यान अपनी बदनामी हो जाने के भय में लगा हुआ था। उन्हें ठाकुरजी पर भी रोष हो रहा था कि हमारी आबरू बचाने के लिए वर्षा भी नहीं करते, बैठे मुँह ताक रहे हैं। ठाकुरजी के सामने खड़े होकर मन ही मन बोले—"ऐसे में मूसलाधार बरसा दो—बैठे देख क्या रहे हो? भक्त की आबरू बचाने के लिए कुछ भी न करोगे?"
कीर्तन आरम्भ हुआ; परन्तु रायसाहब को इस समय उसके प्रति कोई अनुराग नहीं था। उनका ध्यान अपनी बदनामी हो जाने के भय में लगा हुआ था। उन्हें ठाकुरजी पर भी रोष हो रहा था कि हमारी आबरू बचाने के लिए वर्षा भी नहीं करते, बैठे मुँह ताक रहे हैं। ठाकुरजी के सामने खड़े होकर मन ही मन बोले––"ऐसे में मूसलाधार बरसा दो––बैठे देख क्या रहे हो? भक्त की आबरू बचाने के लिए कुछ भी न करोगे?"