"विकिस्रोत:आज का पाठ/१२ अगस्त": अवतरणों में अंतर

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-->{{featured download|रक्षा बंधन/२०—रक्षा-बन्धनभक्त की टेर}}<!--
-->[[File:Lord krishna.jpg|90px]] '''[[रक्षा बंधन/१-भक्त की टेर|१-भक्त की टेर]]''' [[लेखक:विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक'|विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक']] द्वारा रचित कहानी है जो १९५९ ई॰ में आगरा के '''विनोद पुस्तक मन्दिर''' द्वारा प्रकाशित [[रक्षा बंधन]] कहानी संग्रह में संग्रहित है।
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"रायसाहब कन्हैयालाल भी ऐसे लोगों में थे जिन्होंने कीर्तन को अपना मनोरंजन बना रक्खा है। उनके घर में कृष्ण मन्दिर था। कृष्ण-मन्दिर में ही कीर्तन होता था। रायसाहब के कुछ परिचित तथा कुछ वेतन-भोगी लोग सन्ध्या को ७ बजे आ जाते थे और नौ बजे तक कीर्तन करते थे। चलते समय उन्हें एक एक दोना प्रसाद मिलता था। कुछ लोक तो केवल प्रसाद के लालच से ही आकर सम्मिलित हो जाते थे। मनोरंजन का मनोरंजन और प्रसाद घाते में। कभी-कभी पास-पड़ोस की कुछ महिलायें भी आ जाती थीं। जिस दिन महिलाओं का सहयोग प्राप्त हो जाता था उस दिन कीर्तन करने वाले अपना पूरा जोर लगा देते थे। कुछ लोगों के लिए महिलाओं की उपस्थिति स्फूर्ति-दायक होती है। एक दिन कीर्त्तन करने वाले रायसाहब से बोले "कृष्णाष्टमी आ रही है।"<br>
एक दिन कीर्त्तन करने वाले रायसाहब से बोले "कृष्णाष्टमी आ रही है।" [ ९ ]"हाँ! खूब धूम से मनायेंगे।"<br>
"इस बार कुछ नवीनता होनी चाहिए।"<br>
"कैसी नवीनता! झाँकी में नवीनता?"<br>