"पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/७७": अवतरणों में अंतर
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दुर्गेशनन्दिनी। |
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उसमान हंसने लगा और बोला 'मैं यह नहीं जानता था कि राजपुत्र सेनापति मरने से डरता है, लड़ो, मैं तुमको मारूंगा छोडूंगा नहीं तुम जीते जी आयेशा को नहीं पा सकते।' |
उसमान हंसने लगा और बोला 'मैं यह नहीं जानता था कि राजपुत्र सेनापति मरने से डरता है, लड़ो, मैं तुमको मारूंगा छोडूंगा नहीं तुम जीते जी आयेशा को नहीं पा सकते।' |
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राजपुत्र ने कहा 'मैं आयेशा को नहीं चाहता।' |
राजपुत्र ने कहा 'मैं आयेशा को नहीं चाहता।' |
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उसमान तरवार भांजते २ बोला 'तुम आयेशा को नहीं चाहते किन्तु आयेशा तुमको चाहती है । लड़ो, छूटोगे नहीं।'' |
उसमान तरवार भांजते २ बोला 'तुम आयेशा को नहीं चाहते किन्तु आयेशा तुमको चाहती है । लड़ो, छूटोगे नहीं।'' |
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राजकुमार ने असि दूर फेंक कर कहा 'मैं न लडूंगा। तुमने हमारा इतना उपकार किया है मैं तुमसे लड़ नहीं सक्ता। |
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फिर राजकुमार से न रहा गया और चट भूमि पर से तरवार को उठा सिंह की भांति कूद कर उसके छाती पर चढ़ बैठे और उसके हाथ से तरवार छीन ली। दहिने हाथ से तरबार उसके गले पर रख बोले 'अब तो साधमिट गयी?' |
फिर राजकुमार से न रहा गया और चट भूमि पर से तरवार को उठा सिंह की भांति कूद कर उसके छाती पर चढ़ बैठे और उसके हाथ से तरवार छीन ली। दहिने हाथ से तरबार उसके गले पर रख बोले 'अब तो साधमिट गयी?' |
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उसमान ने कहा ' |
उसमान ने कहा 'अभी तो दम में दम है।' |
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उसमान ने कहा 'फिर निकाल लो नहीं तो मैं तुमको मारने को |
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जीता रहूंगा। |
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जगतसिंह ने कहा 'रहो कुछ भय नहीं।' मैं तो तुमको मार डालता किन्तु तुमने मेरी प्राण रक्षा की है मैंने भी छोड़ा।' |
जगतसिंह ने कहा 'रहो कुछ भय नहीं।' मैं तो तुमको मार डालता किन्तु तुमने मेरी प्राण रक्षा की है मैंने भी छोड़ा।' |
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यह कह दोनों पैरों से उसका दोनों हाथ दबा लिया और एक २ करके उसका सब शस्त्र छीन लिया और फिर उसको छोड़कर बोले 'अव बराबर घर चले जाओ, तुमने मुसलमान होकर राजपुत्र की छाती में लात मारा था इसीलिये तुम्हारी यह दशा की गयी नहीं तो राजपूत कृतघ्न नहीं होते जो अपने |
यह कह दोनों पैरों से उसका दोनों हाथ दबा लिया और एक २ करके उसका सब शस्त्र छीन लिया और फिर उसको छोड़कर बोले 'अव बराबर घर चले जाओ, तुमने मुसलमान होकर राजपुत्र की छाती में लात मारा था इसीलिये तुम्हारी यह दशा की गयी नहीं तो राजपूत कृतघ्न नहीं होते जो अपने<br> |