"पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/५१": अवतरणों में अंतर
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तिलोत्तमा ने कहा'इतने दिन जी कर क्या किया और अब जी कर क्या करूंगी।' |
तिलोत्तमा ने कहा 'इतने दिन जी कर क्या किया और अब जी कर क्या करूंगी।' |
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बिमला भी रोने लगी और थोड़ी देर में ठंढी सांस लेकर बोली अब क्या उपाय करना |
बिमला भी रोने लगी और थोड़ी देर में ठंढी सांस लेकर बोली अब क्या उपाय करना चाहिये?' |
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तिलोत्तमा ने बिमला के अलंकार की ओर देखकर कहा 'उपाय करके क्या होगा! |
तिलोत्तमा ने बिमला के अलंकार की ओर देखकर कहा 'उपाय करके क्या होगा!' |
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बिमला |
बिमला ने कहा 'बेटी! लड़करन नहीं करते। अभी क्या तुने कतलूखां को नहीं जाना अपने अनावकाश के कारण वा हमारे शोक निवारण के कारण उस दुष्ट ने अभी तक क्षमा किया था। आज तक उसकी अवधि थी। यदि आज हमलोगों को नृत्य शाला में न देखेगा तो न जाने क्या करेगा। तिलोत्तमा ने कहा 'अब और क्या करेगा?' |
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बिमला ने कुछ स्थिर होकर कहा 'तिलोत्तमा!आशा क्यों छोड़ती है ? जबतक शरीर में प्राण है तबतक |
बिमला ने कुछ स्थिर होकर कहा 'तिलोत्तमा ! आशा क्यों छोड़ती है ? जबतक शरीर में प्राण है तबतक धर्म्म प्रतिपालन करूंगी।' |
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तिलोत्तमा ने कहा'तो माता?यह अलंकार उतार के फेक दे। इनको देखकर मुझे शूल होता है।' |
तिलोत्तमा ने कहा 'तो माता ? यह अलंकार उतार के फेक दे। इनको देखकर मुझे शूल होता है।' |
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विमला ने |
विमला ने मुसकिरा कर कहा 'बेटी! जब तक मेरा सब आभरण न देखले तब तक मेरी निंदा न करना।' और वस्त्र के नीचे से एक खरतर छूरी निकाली। दीप की ज्योति पड़ने से उसकी प्रभा बिजलीसी चमकी और तिलोत्तमा डर गई। उसने पछा 'यह तूने कहां पाया विमला ने कहा'कल महल में एक नई दासी आई है तूने उसको देखा है ?' |
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ति०। देखा |
ति०। देखा है। आसमानी आई है। |
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बि०। उसी के द्वारा इसको अभिराम स्वामी के यहां से मंगाया है। |