"पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/८९": अवतरणों में अंतर
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उत्सव के निमित्त राजकुमार ने अपने सहचरों को जहानाबाद से निमन्त्रण भेजकर बुलवा लिया था। तिलोतमा के पितृवान्धव भी निमन्त्रित होकर इस आमोद में आये हुए थे। |
उत्सव के निमित्त राजकुमार ने अपने सहचरों को जहानाबाद से निमन्त्रण भेजकर बुलवा लिया था। तिलोतमा के पितृवान्धव भी निमन्त्रित होकर इस आमोद में आये हुए थे। |
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आयेशा की इच्छा के अनुसार राजकुमार मे उसको भी बुलवा भेजा और वह अपनी किशोरावस्था के सहोदर और, और २ अनेक लोगों को सङ्ग लेकर आई। |
आयेशा की इच्छा के अनुसार राजकुमार मे उसको भी बुलवा भेजा और वह अपनी किशोरावस्था के सहोदर और, और २ अनेक लोगों को सङ्ग लेकर आई। |
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यद्यपि आयेशा यवन की पुत्री थी किन्तु जगतसिंह और तिलोत्तमा दोनों उसको बहुत चाहते थे अतएव वह अपनी सहचारियों के साथ महल में उतारी गई । पाठक लोगों, संदेह होगा कि उस तापित हृदया को इस उत्सव में आनन्द न मिला होगा किन्तु यथार्थ में ऐसा नहीं था वह अपने हंसते स्वभाव के प्रभाव से सबको आनन्दित करती थी। |
यद्यपि आयेशा यवन की पुत्री थी किन्तु जगतसिंह और तिलोत्तमा दोनों उसको बहुत चाहते थे अतएव वह अपनी सहचारियों के साथ महल में उतारी गई । पाठक लोगों, संदेह होगा कि उस तापित हृदया को इस उत्सव में आनन्द न मिला होगा किन्तु यथार्थ में ऐसा नहीं था वह अपने हंसते स्वभाव के प्रभाव से सबको आनन्दित करती थी। |
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आनन्द के दिन निर्विघ्न समाप्त हुए और आयेशा घर जाने का उद्योग करने लगी, हँसते हंसते बिमला से |
आनन्द के दिन निर्विघ्न समाप्त हुए और आयेशा घर जाने का उद्योग करने लगी, हँसते हंसते बिमला से बिदा हुई। विमला कुछ जानती तो थी ही नहीं हंसकर बोली 'शाहज़ादी।' जब ऐसाही शुभ दिन तुम्हारा आवेगा हमलोग तुम्हारे नेवरे में आधेगे। |
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