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<br>है वैसा भोगेगा। अभी तो तेरे जीने की आशा थी पर तू ने अपने हाथ से वह बिगाड़ा।'
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बीरेन्द्रसिंह गर्व पूर्वक हंस कर बोले कतलू खां - मैं हाथ पैर बंधा कर तुम्हारे समीप दया की आशा कर के नहीं आया हूं जिस का जीवन तुम्हारी दया के आधीन है उसका जीनाही क्या? यदि तुम केवल मेराही प्राण ले कर सन्तुष्ट होते तब भी मैं तुमको आशीर्वाद देता परन्तु तुमने तो हमारे कुल का नाश कर डाला और प्राण से भी अधिक तुमने हमारे बीरेन्द्रसिंह के मुंह से और बात नहीं निकली कंठ रूंध गया आंखों से पानी बहने लगा। भय हीन दाम्भिक बीरेन्द्रसिंह सिर नीचे करके रोने लगे।
द्वितीय खण्ड ।

है वैसा भोगेगा । अभी तो तेरे जीने की आशा थी पर लू ने अपने हाथ से वह बिगाड़ा।'
कललू खां तो सहज निठुर था। वरन उसको परायः दुख देख कर उल्लास होता था बीरेन्द्रसिंह को इस अवस्था में देखकर उसको हंसी आयी और बोला 'बीरेन्द्रसिंह! कुछ मांगना हो तो मांग लो अब तुम्हारी घड़ी आगयी। रोते बीरेन्द्रसिंह की छाती कुछ ठंढी हुई और बोले 'मुझको और कुछ न चाहिये अब शीघ्र मेरे बध की आज्ञा दीजिये।'
बीरेन्द्रसिंह गर्व पूर्वक हंस कर बोले कतलू खां-मैं हाथ पैर बंधा कर तुम्हारे समीप दया की आशा कर के नहीं आया है जिस का जीवन तुम्हारी दया के आधीन है उसका जीनाही क्या? यदि तुम केवल मेराही प्राण ले कर सन्तुष्ट होते तब भी मैं तुमको आशीवाद देता परन्तु तुमने तो हमारे कुल का नाश कर डाला और प्राण से भी अधिक तुमने हमारेवीरेन्द्रसिंह के मुंह से और बात नहीं निकली कंठ संघ गया आंखों से पानी बहने लगा । भय हीन दाम्भिक वीरेन्द्रसिंह सिर नीचे करके रोने लगे।

कललू खां तो सहज निठुर था । वरन उसको परायः दुख देख कर उल्लास होता था बीरेन्द्रसिंह को इस अवस्था में देखकर उसको हंसी आयी और बोला वीरेन्द्रसिंह ! कुछ मांगना हो तो मांग लो अब तुम्हारी घड़ी आगयी। रोते . बीरेन्द्रसिंह की छाती कुछ ठंढी हुई और बोले 'मुझको और कुछ न चाहिये अब शीघ्र मेरे बघ की आज्ञा दीजिये।'
१०-'यह तो होहीगा और कुछ ?' 'अब इस जन्म और कुछ न चाहिये । ' 'मरती समय अपनी कन्या से भेट नहीं करोगे?'
क॰ - 'यह तो होहीगा और कुछ?'
'अब इस जन्म और कुछ न चाहिये।'
'मरती समय अपनी कन्या से भेंट नहीं करोगे?'

इस शब्द को सुन कर बीरेन्द्र सिंह के हृदय पर नया घाव लगा । 'यदि हमारी कन्या तुम्हारे घर में जीता है तो उसकीदेखूगा और यदि मरगयी हो तो लाओ उसको गोद में लेकर मकं ।' दर्शकगण चुपचाप दांत लले उंगली दबाये इस कौतुक को देख रहे थे। | লাক্স স্ক্য মাঙ্কা থাপ্পষ্ট মন্ত্রে সুমি
इस शब्द को सुन कर बीरेन्द्र सिंह के हृदय पर नया घाव लगा। 'यदि हमारी कन्या तुम्हारे घर में जीती है तो उसकोदेखूंगा और यदि मरगयी हो तो लाओ उसको गोद में लेकर मरूं।' दर्शकगण चुपचाप दांत लले उंगली दबाये इस कौतुक को देख रहे थे।

नवाब की आज्ञा पाय 'रक्षक बीरेन्द्रसिंह को बध भूमि
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