"पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/७४": अवतरणों में अंतर

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<br>तुम्हारे संग भाग चलूं, ओर तिरछा आखें करके उसके मुंह की ओर देखने लगी।
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शेख जी मारे आल्हाद के फूल गए, और बोले चलो न।
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वि०| ले चलने कहो तो चलैं।
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{ ७१ ]
शेख०| वाह तुमको न ले चलूंगा! प्राण मांगो तो दे दूं।
तुम्हार सग भाग चलू, ओर तिरछा आचे करके उसके मुंह

की ओर देखने लगी।
बि०| अच्छा तो यह लो, और गले से सोने की माला निकाल कर प्रहरी के गले में डाल दिया और बोली "हमारे शास्त्र में माला द्वारा विवाह होता है"।
शेख जी मारे आल्हाद के फूल गएऔर बोले चलो न ।

वि० 19 चलने को तो अलखें ।
प्रहरी ने दांत बाय कर कहां, तो हमारी तुम्हारी शादी हो गई! "होही गई" कहके विमला चुप रह कर कुछ सोचने लगी।
शेख० 1 वाह तुमको न ले चलूगा ! प्राण मांगो तो दे दें।

बि० । अच्छा तो यह लो, और गले से सोने की माला
प्रहरी ने कहा क्या सोचती हो?
निकाल कर प्रहरी के गले में डाल दिया और बोली “इमारे

शास्त्र में माला द्वारा विवाह होता है"।
वि०| क्या सोचूं मेरे भाग्य में सुख नहीं है।
प्रहरी ने दांत बाय कर कहां, तई हमारी तुम्हारी शादी

हो गई ! ‘झोही राई’’ कहके बिमला चुप रह कर कुछ
शेख०| क्यों?
सोचने लगी !

प्रहरी ने कहा क्या सोचती हो ?
बि०| तुम लोग यहां जय न पाओगे?
वि० 1 क्या सोचें मेरे भय में कुछ नहीं है।

देख० 1 क्यों ?
शे०| जय हुआ कि होने को है।
बिe I तुम लोग यहाँ जय न पाओगे ?

- जय हुआ कि होने को है।
बि ० हूं इसमें एक केंद्र है।
बि०| ऊं-हूं इसमें एक भेद है।

क्या लेद है ?
श०| क्या भेद है?
बि० तुमसे कह दें।

व २ : हां ।
बि०| तुमसे कह दूं।
बिमला ने कुछ संकोच प्रकाश किया ।

शेख जी ने घबरा कर कहा क्, क्या है।
शे०| हां।
बिमला बोली तुम जानते नहीं , जणतांलेह इस सहय

सेना लिए इसी दुर्ग के समीप ठहरे हैं उनको यह मालूम है
बिमला ने कुछ संकोच प्रकाश किया।
कि आज तुम्कलोग यहां आओगेअभी कुछ न बोलेंगे, किंतु

जब तुम लोग दुर्ग जय कर निश्चित हो जाओगे तब तुमको
शेख जी ने घबरा कर कहा क्यों, क्या है।
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बिमला बोली तुम जानते नहीं, जगतसिंह दस सहस्त्र सेना लिए इसी दुर्ग के समीप ठहरे हैं उनको यह मालूम है कि आज तुमलोग यहां आओगे, अभी कुछ न बोलेंगे, किंतु जब तुम लोग दुर्ग जय कर निश्चिंत हो जाओगे तब तुमको