"पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/७४": अवतरणों में अंतर
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की ओर देखने लगी। |
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बि०| अच्छा तो यह लो, और गले से सोने की माला निकाल कर प्रहरी के गले में डाल दिया और बोली "हमारे शास्त्र में माला द्वारा विवाह होता है"। |
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बि० । अच्छा तो यह लो, और गले से सोने की माला |
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निकाल कर प्रहरी के गले में डाल दिया और बोली “इमारे |
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शास्त्र में माला द्वारा विवाह होता है"। |
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हो गई ! ‘झोही राई’’ कहके बिमला चुप रह कर कुछ |
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सोचने लगी ! |
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बि०| ऊं-हूं इसमें एक भेद है। |
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श०| क्या भेद है? |
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व २ : हां । |
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शे०| हां। |
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बिमला बोली तुम जानते नहीं , जणतांलेह इस सहय |
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सेना लिए इसी दुर्ग के समीप ठहरे हैं उनको यह मालूम है |
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कि आज तुम्कलोग यहां आओगेअभी कुछ न बोलेंगे, किंतु |
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जब तुम लोग दुर्ग जय कर निश्चित हो जाओगे तब तुमको |
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बिमला बोली तुम जानते नहीं, जगतसिंह दस सहस्त्र सेना लिए इसी दुर्ग के समीप ठहरे हैं उनको यह मालूम है कि आज तुमलोग यहां आओगे, अभी कुछ न बोलेंगे, किंतु जब तुम लोग दुर्ग जय कर निश्चिंत हो जाओगे तब तुमको |