"पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/६९": अवतरणों में अंतर
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बिसला ने कहा तुम इस दुमें में क्या करने आए । जोर |
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बि० |
बि०| तुम दुर्ग में कैसे आए? |
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सैe । तुम्हारेही करते आया हूं ? जब तू द्वार खोल कर |
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चली गई उसी समय |
सै०| तुम्हारेही करते आया हूं? जब तू द्वार खोल कर चली गई उसी समय मैं भीतर आया और तेरेही पीछे २ चला आता हूं। |
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बलां आता हूं । |
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विमला ने अपना माथा ठोंका फिर पूछा तुम हौ |
विमला ने अपना माथा ठोंका फिर पूछा तुम हौ कौन? |
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न ? |
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सै० |
सै०| मैं पठान हूं। |
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बि० |
बि०| यहतो कुछ नहीं हुआ जाति के पठान हो पर हौ कौन? |
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स - t उस्मान खा कतलू खां का लेनापति । |
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बिमला का शरीर कांपने लगा और सनमें अलय कि किसी |
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प्रकार बीरेन्द्रसिंह को समाचार पहुचता तो अच्छा था, |
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किन्तु कोई उपाय नहीं क्योंकि यह तो आगेह खड़ा है । |
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सै०| उसमान खां कतलू खां का सेनापति। |
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जब तक यह बात करता है तभी तक अवकाश हैं इतने में |
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यदि कोई प्रहरी अजाय तो बड़ी बात हो और उसको |
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बिमला का शरीर कांपने लगा और मनमें आया कि किसी प्रकार बीरेन्द्रसिंह को समाचार पहुंचता तो अच्छा था, किन्तु कोई उपाय नहीं क्योंकि यह तो आगेही खड़ा है। जब तक यह बात करता है तभी तक अवकाश हैं इतने में यदि कोई प्रहरी आजाय तो बड़ी बात हो और उसको बातों में उलझा लिया। |
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वां में उलझा लिया । |
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आप इस दुर्ग से क्या करने आए? |
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उसमान ख खां के उत्तर दिया हम लोगों ने बरेन्द्रसिंह के |
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पाल दूत भेजा था पर उन्होंने उत्तर दिया कि तुम लोगों |
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उसमान खां ने उत्तर दिया "हम लोगों ने बीरेन्द्रसिंह के पास दूत भेजा था पर उन्होंने उत्तर दिया कि तुम लोगों से जो करते बने सो करो।" |
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से जो करते बने सो करो ।'' |
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