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तुरुही नहीं बजती थी, आज इतनी रात को क्या बात है मार्ग का व्यापार सब स्मरण करके मनमें अमङ्गल का अनुभव करने लगीं और खिड़की की राह अमराई की ओर देखने लगी। फिर घबरा कर कोठरी के बाहर निकल आई और आंगन में होकर सोपान द्वारा अटारी पर चढ़ इधर उधर देखने लगी किन्तु पेड़ों की छाया और अंधेरी रात के कारण कुछ देख न पड़ा, मुडे़रे के नीचे झांक कर देखा परन्तु कहीं कुछ दिखाई न दिया। अमराई में बड़ा अंधेरा था,। उदास होकर नीचे उतरना चाहती थी कि अकस्मात किसी ने आकर उसके पीछे से उसको स्पर्श किया, उलट कर देखा कि शस्त्र बांधे एक मनुष्य खड़ा है उसको देखतेही हाथ पैर ढ़ीले हो गए और पुतली सी खड़ी रह गई।
में ६५ !

शस्त्रधारी ने कहा "सावधान" चिल्लाना न, नहीं तो उठा कर छत के नीच फेंक दूंगा।"
तुरुही नहीं बजती थीआज इतनी रात को क्या बात है।

अा की व्यापार बच सरण करके सनमें अमर्केल का
इस मनुष्य का पहिरावा पठान सैनिक का सा था परन्तु उत्तमता के कारण बोध होता था कि यह कोई उच्च पद धारी है। उमर उसकी अभी तीस बर्ष से अधिक नहीं थी और श्री उसके मुंह पर दीप्तमान थी पगड़ी में एक हीरा भी लगा था। बीरता तो उसमें जगतसिंह से कम नहीं झलकती थी पर शरीर उतना विशाल नहीं था। कटिबन्द में तेगा और हाथ में नंगी तलवार लिए था।
अनुभब कलने लगीं और खिड़की की राह आमराई की ओर

देखने लगी । फिर घबरा कर कोठरी के बाहर निकल आई
उसने कहा खबरदार जो चिल्लायगी तो अभी नीचे डाल दूंगा।
और आंगन में होकर सोपान छात्र अटारी पर चढ़ इधर

उधर देखने लगी किन्तु पेड़ों की छाया और अंधेरी रात।
परम चतुर विमला किञ्चित काल पर्य्यन्त बिहली थी आगे मृत्यु और पाछे गड़हा प्राण रक्षा का उपाय केवल इश्वराधीन था, धीरे से बोली "तुम कौन हो?"
के कारण कुछ देख न पड़ा, मुडेरे के नांजे झांक कर देखा
परन्तु कह कुछ दिखाई न दिया । अमराई में बड़ा अंधरा
था, । उदास होकर नीचे उतरना चाहती थी कि अकस्मत
किसी ने आकर उसके पछेि से उसको स्पर्श किया,उलट कर
देखा कि शस्त्र बांधे एक मनुष्य खड़ा है उसको देखतेही
हाथ पैर ढीले हो गए और पुतली सी खड़ी रह गई ।
शलधारी ने कहा ‘सावधान' चिल्लाना न, नहीं तो
उठा कर छत के नीच फेंक डंगा है।
इस अनुष्य का पहरावा पठान सैनिक का सा था परन्तु
उसमता के कारण बोध होता था कि यह कोई उच पद
धारी है । उमर उसकी अभी तोस वर्ष से अधिक नहीं थी
और श्री उसके मुंह पर दीपमान थी र पगड़ी में एक हीरा भी
लगा था। बरिता तो उसमें जगतासिंह से कम नहीं झलकती
थी पर शरीर उतना विशाल नहीं था । कटिबन्द में तेरा
और हाथ में नेग तरवार लिए था ।
उसने कहा खबरदार जो चिटलायगी तो अभी नीचे
डाल कुंबई ।
एस्म चतुर विमला किश्चित काल पर्यन्त बिहली थी
असे सत्यु और पाछे गड़हा प्राण रक्षा का उपाय केवल ।
इश्घराधन था, धीरे से बोली “तुम कौन हो १ ।