भ्रमरगीत-सार/२७७-मधुकर को मधुबनहिं गयो
मधुकर! को मधुबनहिं गयो?
काके कहे सँदेस लै आए, किन लिखि लेख दयो?
को बसुदेव-देवकीनंदन, को जदुकुलहि उजागर?
तिनसों नहिं पहिचान हमारी, फिरि लै दीजो कागर॥
गोपीनाथ, राधिकाबल्लभ, जसुमति नँद कन्हाई।
दिन प्रति दान लेत गोकुल में नूतन रीति चलाई॥
तुम तौ परम सयाने ऊधो! कहत और की औरै।
सूरदास पंथ के बहँके बोलत हौ ज्यों बौरे॥२७७॥