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संपादकका निवेदन

गाधीजीको बचपनसे ही दु:खमे रामनाम यानी राम या अीश्वरका नाम लेना सिखाया गया था। अेक सत्याग्रही या अैसे व्यक्तिके नाते, जो दिनके चौबीसो घटे सत्य या अीश्वरमे अटल श्रद्धा रखता है, गाधीजीने यह जान लिया था कि अीश्वर हर तरहकी कठिनाअीमे—फिर वह शारीरिक हो, मानसिक हो या आध्यात्मिक—हमेशा अुन्हे सान्त्वना और सहारा देता है। अुनकी सबसे पहली परीक्षाओमे अेक ब्रहाचर्य-पालनके सम्बन्धमे थी। गाधीजीने कहा है कि अपवित्र विचारोको रोकनेमे रामनामने अुनकी सबसे बडी मदद की। रामनामने अुन्हे अुपवासोकी पीडासे पार लगाया। रामनामने ही आत्माकी सारी अकेली लडाअियोमे अुन्हे जिताया, जो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्रोके नेताके नाते अुन्हें लडनी पडी थी। लेकिन अपने-आपको अीश्वरके भरोसे ज्यादा-ज्यादा छोडनेके दरमियान अुनकी आखिरी खोज यह थी कि रामनाम शारीरिक रोगोका भी अिलाज है।

सत्यकी खोज करने और मानव जातिके दु:खोको कम करनेकी अुत्कट अिच्छा रखनेके कारण गाधीजीने लम्बे समयसे शुद्ध हवा, मालिश, कअी तरहके स्नानो, अुपवासो, योग्य आहार, मिट्टीकी पट्टी और अैसे ही दूसरे साधनोके जरिये रोग मिटानेके सादे और सस्ते तरीके खोज निकाले थे। अुनका विश्वास था कि आज व्यापारके लिअे बडे पैमाने पर बनाई जानेवाली और आखिरमे मनुष्य-शरीरको नुकसान पहुचानेवाली बेशुमार दवाओके बनिस्बत अिलाजके ये तरीके कुदरत या अीश्वरके नियमोसे ज्यादा मेल खाते है।

लेकिन मनुष्य सिर्फ शरीर ही नही है बल्कि और भी कुछ है, अिसलिये गाधीजीका यह पक्का विश्वास था कि मनुष्यकी बीमारियोका सिर्फ शारीरिक अिलाज ही काफी नही है। शरीरके साथ बीमारके मन और आत्माका भी अिलाज करनेकी जरूरत है। जब ये दोनो नीरोग