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रामनामके बारेमें भ्रम

अेक मित्र लिखते है

"आपने रामनामसे मलेरियाका अिलाज सुझाया। मेरी मुश्किल यह है कि जिस्मानी बिमारियोंके लिअे रूहानी ताकत पर भरोसा करना मेरी समझसे बाहर है। मैं पक्की तरहसे यह भी नहीं जानता कि आया मुझे अच्छा होनेका हक भी हैं या नहीं। और क्या अैसे वक्त जब मेरे देशवाले अितने दुखमे पडे हैं, मेरा अपनी मुक्तिके लिअे प्रार्थना करना ठीक होगा? जिस दिन मैं रामनाम समझ जाअूगा, अुस दिन मैं अुनकी मुक्तिके लिए प्रार्थना करूँगा। नहीं तो मैं अपने-आपको आजसे ज्यादा खुदगरज महसूस करूँगा।"

मैं मानता हू कि यह दोस्त सत्यके सच्चे तलाश करनेवाले है। अुनकी अिस मुश्किल की खुल्लमखुल्ला चर्चा मैंने अिसलिअे की है कि अुन जैसे बहुतोंकी मुश्किले इसी तरहकी है।

दूसरी ताकतोकी तरह रूहानी ताकत भी मनुष्यकी सेवाके लिअे है। सदियोसे थोडी-बहुत सफलताके साथ शारीरिक रोगोको ठीक करनेके लिअे अुसका अुपयोग होता रहा है। अिस बातको छोड भी दे, तो भी अगर जिस्मानी बीमारियोके अिलाजके लिअे कामयाबीके साथ अुसका अिस्तेमाल हो सकता हो, तो अुसका अुपयोग न करना बहुत बडी गलती है। क्योकि आदमी जड तत्त्व भी हैं और आ मा भी है। और, अिन दोनोका अेक-दूसरे पर असर होता है। अगर आप मलेरियासे बचने के लिअे कुनैन लेते है, और अिस बातका खयाल भी नही करतेकि करोडोको कुनैन नही मिलती, तो आप उस इलाजके इस्तमालसे क्यो अिनकार करते है जो आपके अन्दर है? क्या सिर्फ अिसलिअे कि करोडो अपने अज्ञान के कारण उसका अिस्तेमाल नही करते? अगर करोडो अनजाने या हो सकता है जान-बूझकर भी गन्दे रहे, तो क्या आप अपनी सफाअीयों और सेहत का ध्यान छोड देंगे? सखावतकी गलत कल्पनाके कारण अगर आप साफ नहीं रहेंगे, तो गन्दे और बीमार रहकर आप अुनहीं करोडोंकी सेवाका फर्ज भी अपने अूपर नहीं ले सकेंगे। और यह बात तो पक्की है कि आत्माका रोगी या गन्दा होना (अुसे अच्छी और साफ रखनेसे अिनकार करना) बीमार और गन्दा शरीर रखनेसे भी बुरा है।

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