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रामनाम

हम मरिअम्मा देवीकी पूजा करते है और बहुतसे रोगी अच्छे हो जाते है। यह चीज अेक करामात-सी लगती है। जहा तक पेट-दर्दकी बात है, बहुतसे लोग तिरुपतिमे देवीकी मन्नते मानते है। अच्छे होने पर अुसकी मूर्तिके हाथ-पाव धोते है, और दूसरी मानी हुई मन्नते पूरी करते है। मेरी ही माकी मिसाल लीजिये। अुनको पेटमे दर्द रहता था। पर तिरुपति हो आनेके बाद अुनकी वह तकलीफ दूर हो गअी।

"कृपा करके अिस बात पर रोशनी डालिये और यह भी कहिये कि कुदरती अिलाज पर भी लोग अैसा ही विश्वास क्यो न रखे? अिससे डॉक्टरोका बार-बारका खर्च बच जायगा, क्योकि चॉसरके कहनेके मुताबिक डॉक्टरका तो काम ही है कि वह दवाअी बेचनेवालेसे मिलकर बीमारको हमेशा बीमार बनाये रखे।"

जो मिसाले अूपर दी गअी है, वे न तो कुदरती अिलाजकी ही है, और न रामनामकी ही, जिसको मैने अिसमे शामिल किया है। अुनसे यह पता जरूर चलता है कि कुदरत बहुतसे रोगियोको बिना किसी अिलाजके भी अच्छा कर देती है। ये मिसाले यह भी दिखाती है कि हिन्दुस्तानमे वहम हमारी जिन्दगीका कितना बडा हिस्सा बन गया है। कुदरती अिलाजका मध्यबिन्दु यानी रामनाम तो वहमका दुश्मन है। जो बुराअी करनेसे झिझकते नही, वे रामनामका नाजायज फायदा अुठायेगे। पर वे तो हर चीज या हर अुसूलके साथ अैसा ही करेगे। खाली जबानसे रामनाम रटनेसे अिलाजका कोअी सम्बन्ध नही। अगर मै ठीक समझा हू, तो जैसा कि लेखकने बताया है, विश्वास-चिकित्सामे यह माना जाता है कि रोगी अन्ध-विश्वाससे अच्छा हो जाता है। यह मानना तो अीश्वरके नामकी हसी अुडाना है। रामनाम सिर्फ कल्पनाकी चीज नही, की अुसे तो दिलसे निकलना है। परमात्मामें ज्ञानके साथ विश्वास हो और उसके साथ-साथ कुदरतके नियमोका पालन किया जाय, तभी किसी दूसरी मददके बिना रोगी बिलकुल अच्छा हो सकता है। अूसूल यह है कि शरीरकी सेहत तभी बिलकुल अच्छी हो सकती है, जब मनकी सेहत पूरी-पूरी ठीक हो। और मन पूरा-पूरा ठीक तभी होता है, जब दिल पूरा-पूरा ठीक हो। यह वह दिल नही, जिसे डॉक्टर छाती जाचनेके यत्र (स्टेथोस्कोप) से देखते है, बल्कि वह दिल है जो ईश्वरका घर है। कहा जाता है कि अगर कोअी अपने अन्दर परमात्माको पहचान ले, तो अेक भी गन्दा या फजूल खयाल मनमे नही आ सकता।