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अुरुळीकांचनमे

पहले ही दिन गावके बाहर सामूहिक प्रार्थना की गअी और दूसरी जगहोकी तरह यहा भी सबके अेक साथ रामधुन गानेका रिवाज शुरू किया गया। प्रार्थनामे जो भजन गाया गया था, अुसका आधार लेकर गाधीजीने वहा आये हुअे गावके लोगोके सामने शरीरकी बीमारियोको मिटानेवाली बढियासे बढिया कुदरती दवाके रूपमे रामनाम पेश किया "अभी हमने जो भजन गाया, अुसमे भक्त कहता है 'हरि! तुम हरो जनकी पीर।' यानी हे भगवान तू अपने भक्तोका दुख दूर कर। अिसमे जिस दुखकी बात कही गअी है, वह सब तरहके दुखोसे सम्बन्ध रखती है। मन या तनकी किसी खास बीमारीकी चर्चा अिसमे नही है।" फिर गाधीजीने लोगोको कुदरती अिलाजकी सफलताके नियम बताये "रामनामके प्रभावका आधार अिस बात पर है कि आपकी अुसमे सजीव श्रद्धा है या नही। अगर आप गुस्सा करते है, सिर्फ शरीरकी हिफाजतके लिअे नहीं, बल्कि मौज-शौकके लिअे खाते और सोते है, तो समझिये कि आप रामनामका सच्चा अर्थ नही जानते। अिस तरह जो रामनाम जपा जायगा, अुसमे सिर्फ होठ हिलेगे, दिल पर अुसका कोअी असर न होगा। रामनामका फल पानेके लिअे आपको जपते समय अुसमे लीन हो जाना चाहिये, और अुसका प्रभाव आपके जीवनके तमाम कामोमे दिखाई पडना चाहिये।"

पहले बीमार

दूसरे दिन सुबहसे बीमार आने लगे। कोअी ३० होगे। गाधीजीने अुनमे से पाच या छहको देखा और अुन सबकी बीमारीके प्रकारको देखकर थोडे हेरफेरके साथ सबको अेकसे ही अिलाज सुझाये। मसलन्, रामनामका जप, सूर्यस्नान, बदनको जोरसे रगडना या घिसना, कटिस्नान, दूध, छाछ, फल, फलोका रस और पीनेके लिअे साफ और ताजा पानी। शामकी प्रार्थना-सभामे अुन्होने अपने विषयको समझाते हुझे कहा "सचमुच यह पाया गया है कि मन और शरीरकी तमाम आधि-व्याधियोका एक ही समान कारण है। अिसलिअे

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