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रामनाम

अुसको ब़ीमारी हो ही क्यो? सवाल ठीक ही है। आदमी स्वभावसे ही अपूर्ण है। समझदार आदमी पूर्ण बननेकी कोशिश करता है। लेकिन पूर्ण वह कभी बन नही पाता, अिसलिअे अनजाने गलतिया करता है। सदाचारमे अीश्वरके बनाये सभी कानून समा जाते है, लेकिन अुसके सब कानूनोको जाननेवाला सपूर्ण पुरुष हमारे पास नही है। मसलन्, अेक कानून यह है कि हदसे ज्यादा काम न किया जाय। लेकिन कौन बतावे कि यह हद कहा खतम होती है? यह चीज तो बीमार पडने पर ही मालूम होती है। मिताहार और युक्ताहार यानी कम और जरूरतके मुताबिक खाना कुदरतका दूसरा कानून है। कौन बतावे कि अिसकी हद कब लाघी जाती है? मैं कैसे जानू कि मेरे लिए युक्ताहार क्या है? अैसी तो कअी बाते सोची जा सकती है। अिस सबका निचोड यही है कि हर आदमीको अपना डॉक्टर खुद बनकर अपने अूपर लागू होनेवाले कानूनका पता लगा लेना चाहिये। जो अिसका पता लगा सकता है और उस पर अमल कर सकता है, वह १२५ बरस जीयेगा ही।

श्री वल्लभराम वैद्य पूछते है कि मामूली मसाले और पाक वगैरा चीजे कुदरती अिलाजमे शुमार की जा सकती है या नही? यह एक बडे कामका सवाल है। डॉक्टर दोस्तोका यह दावा है कि वे पूरी तरह कुदरती अिलाज करनेवाले है। क्योकि दवाये जितनी भी है, सब कुदरतने ही बनाअी है। डॉक्टर तो अुनकी नअी मिलावटे भर करते है। अिसमे बुरा क्या है? अिस तरह हर चीज पेश की जा सकती है। मैं तो यही कहूगा कि रामनामके सिवा जो कुछ भी किया जाता है, वह कुदरती अिलाजके खिलाफ है। अिस मध्यबिन्दुसे हम जितने दूर हटते है, अुतने ही असल चीजसे दूर जा पडते है। अिस तरह सोचते हुअे मै यह कहूगा कि पाच महाभूतोका असल अुपयोग कुदरती अिलाजकी हद है। अिससे आगे बढनेवाला वैद्य अपने अिर्द-गिर्द जो दवाये अुगती हो या अुगाअी जा सके, अुनका अिस्तेमाल सिर्फ लोगोके भलेके लिए करे, पैसे कमानेके लिए नही, तो वह भी कुदरती अिलाज करनेवाला कहला सकता है। ऐसे वैद्य आज कहा है? आज तो वे पैसा कमानेकी होडाहोडीमे पडे है। छानबीन और खोज-अीजाद कोअी करता नही। अुनके आलस और लोभकी वजहसे आयुर्वेद आज कगाल बन गया है।

हरिजनसेवक, १९-५-१९४६