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रामबाण अुपाय

"आप जो भी कुछ लिखते है, मै बड़े चावसे अुसका हरअेक शब्द पढ़ता हू। 'हरिजन' का नया अक मिलने पर जब तक अुसे पूरा न पढ लू, मै रुक नही सकता। नतीजा अिसका यह होता है कि मेरे अन्दर अेक अजीब खुदी पैदा हो जाती है, जो चाहती है कि मै जिसकी पूजा करू, वह मेरी दृष्टिमे पूर्ण हो। कोअी भी अैसी चीज जिस पर विश्वास न जमे, मुझे बेचैन कर देती है। हालमे ही आपने लिखा है कि कुदरती अुपचारमे रामनाम शर्तिया अिलाज है। यह पढ़कर तो मै बिलकुल भ्रममे पड गया हू। आजके नौजवान अपनी सहनशीलताकी वजहसे आपकी बहुतसी बातोका विरोध करना पसन्द नहीं करते। वे सोचते है 'गांधीजीने हमको अितनी सारी चीजे सिखाअी है, हमे अितना अूचा अुठाया है कि जिसकी हम कल्पना भी नही कर सकते थे। अिससे भी बढ़कर अुन्होने हमे स्वराज्यके नजदीक पहुंचा दिया है। अिसलिअे रामनामकी अुनकी अिस झकको हमे बरदाश्त कर लेना चाहिये।'

"दूसरी चीजोके साथ आपने कहा है 'कोअी भी व्याधि हो, अगर मनुष्य हृदयसे रामनाम ले, तो व्याधि नष्ट होनी चाहिये।' (हरिजनसेवक, ३-३-१९४६)

'जिस चीजका मनुष्य पुतला बना है, अुसीसे हम अिलाज ढूढे । पुतला पृथ्वी, पानी, आकाश, तेज और वायुका बना है। अिन पाच तत्त्वोसे जो मिल सके सो ले ।' (हरिजनसेवक, ३-३-१९४६)

'और मेरा दावा है कि शारीरिक रोगोको दूर करनेके लिअे भी रामनाम सबसे बढिया इलाज है।' (हरिजनसेवक, ७-४-१९४६)

"पहले-पहल जब कुदरती अुपचारमे आपने अिस चीजको दाखिल किया, तो मैने समझा कि आप श्रद्धाके आधार पर चलनेवाले मानसिक अुपचार (Psycho-Therapy) अथवा क्रिश्चियन-सायन्सको ही दूसरे शब्दोमे रख रहे है। अुपचारकी हरअेक प्रणालीमे अिनका अपना स्थान होता है। अूपरके

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