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पर हुई वर्षा को नहीं, धरातल में समाई वर्षा को नापता है। मरुभूमि में पानी इतना गिरे कि पांच अंगुल भीतर समा जाए तो उस दिन की वर्षा को पाँच अंगुल रेजों कहेंगे।

रेजाणी पानी खड़िया पट्टी के कारण पाताली पानी से अलग बना रहता है। ऐसी पट्टी के अभाव में रेजाणी पानी धीरे-धीरे नीचे जाकर पाताली पानी में मिलकर अपना विशिष्ट रूप खो देता है। यदि किसी जगह भूजल, पाताली पानी खारा है तो रेजाणी पानी भी उसमें मिलकर खारा हो जाता है।

इस विशिष्ट रेजाणी पानी को समेट सकने वाली कुंई बनाना सचमुच एक विशिष्ट कला है। चार-पांच हाथ के व्यास की कुंई को तीस से साठ-पैंसठ हाथ की गहराई तक उतारने वाले चेजारो कुशलता और सावधानी की पूरी ऊंचाई नापते हैं।

चेजो यानी चिनाई का श्रेष्ठतम काम कुंई का प्राण है। इसमें थोड़ी-सी भी चूक चेजारो के प्राण ले सकती है। हर दिन थोड़ी-थोड़ी खुदाई होती है, डोल से मलबा निकाला जाता है और फिर आगे की खुदाई रोक कर अब तक हो चुके काम की चिनाई की जाती है ताकि मिट्टी भसके, धँसे नहीं।