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महीमंडल जैसे नाम भी हैं। पर बोली में तो बादल के नामों की जैसे घटा छा जाती है। भरणनद, पाथोद, धरमंडल, दादर, डंबर, दलवादल, धन, घणमंड, जलजाल, कालीकांठल, कालाहण, कारायण, कंद, हर्ब, मेहजल, मेघाण,महाघण, रामइयों और सेहर। बादल कम पड़ जाएं, इतने नाम हैं यहां बादलों के। बड़ी सावधानी से बनाई इस सूची में कोई भी ग्वाला चाहे जब दो-चार नाम और जोड़ देता है!

भाषा की और उसके साथ-साथ इस समाज की वर्षा-विषयक अनुभव-सम्पन्नता इन चालीस, चवालीस नामों में समाप्त नहीं हो जाती। वह इन बादलों का उनके आकार, प्रकार, चाल-ढाल, स्वभाव के आधार पर भी वर्गीकरण करती है। सिखर है बड़े बादलों का नाम तो छीतरी हैं छोटे-छोटे लहरदार बादल। छितराए हुए बादलों के झुंड में कुछ अलग-थलग पड़ गया छोटा-सा बादल भी उपेक्षा का पात्र नहीं है। उसका भी एक नाम है - चूंखो। दूर वर्षा के वे बादल जो ठंडी हवा के साथ उड़ कर आया है, उन्हें कोलायण कहां गया है। काले बादलों की घटा के आगे-आगे श्वेत पताका सी उठाए सफेद बादल कोरण या कागोलड़ हैं। और इस श्वेत पताका के बिना ही चली आई काली घटा कांठल या कलायण है।

इतने सारे बादल हों आकाश में तो चार दिशाएं उनके लिए बहुत कम ही होंगी। इसलिए दिशाएं आठ भी हैं और सोलह भी। इन दिशाओं में फिर कुछ स्तर भी हैं। और इस तरह ऊंचाई पर, मध्य में और नीचे उड़ने वाले बादलों को भी अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है। पतले और ऊंचे बादल कस या कसवाड़ हैं। नैऋत कोण से ईशान कोण की और थोड़े नीचे तेज बहने वाले बादल ऊब हैं। घटा का दिन भर छाए रहना, थोड़ा- थोड़ा बरसना सहाड़ कहलाता है। पश्चिम के तेज दौड़ने वाले बादलों की घटा लोरां है और उनसे होने लगातार होने वाली वर्षा लोरांझड़ है। लोरांझड़ वर्षा का एक गीत भी है।