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माटी और आकाश का बदलता स्‍वभाव
 

की गहराई लिए है और प्रायः खारा ही मिलता है।

यहां के कुछ भागों में एक और विचित्र स्थिति है: पानी तो खारा है ही, जमीन भी 'खारी' है। ऐसे खारे हिस्सों के निचले इलाकों में खारे पानी की झीलें हैं। सांभर, डेगाना, डीडवाना, पचपदरा, लूणकरणसर, बाप, पोकरन और कुचामन की झीलों में तो बाकायदा नमक की खेती होती है। झीलों के पास मीलों दूर तक जमीन में नमक उठ आया है।

इसी के साथ है पूरे प्रदेश को एक तिरछी रेखा से नापती विश्‍व की प्राचीनतम पर्वतमालाओं में से एक माला अरावली पर्वत की। ऊंचाई भले ही कम हो पर उमर में यह हिमालय से पुरानी है। इसकी गोद में हैं सिरोही, डूंगरपुर, उदयपुर, आबू, अजमेर और अलवर। उत्तर-पूर्व में यह दिल्ली को छूती है और दक्षिण-पश्चिम में गुजरात को। कुल लंबाई सात सौ किलोमीटर है और इसमें से लगभग साढ़े पांच सौ किलोमीटर राजस्थान राज्‍य को काटती है। वर्षा के मामले में राज्य का यह सम्पन्नतम इलाका माना जाता है।

अरावली से उतर कर उत्तर में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व तक फैला एक और भाग है। इसमें उदयपुर, डूंगरपुर के कुछ भाग के साथ-साथ बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, बूंदी, टौंक, चित्‍तौडगढ़, जयपुर और भरतपुर जिले हैंं। मरुनायकजी यानी श्रीकृष्ण के जन्म स्थान ब्रज से सटा है भरतपुरा। दक्षिणी-पूर्वी पठार भी इसमें फंसा दिखता है। इसमें कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर और धौलपुर हैं। धौलपुर से मध्यप्रदेश के बीहड़ शुरू हो जाते हैं।

यहां जिस तरह नीचे माटी का स्‍वभाव बदलता हैै, इसी तरह ऊपर आकाश का भी स्वभाव बदलता जाता है।

हमारे देश में वर्षा मानसूनी हवा पर सवार होकर आती है। मई-जून में पूरा देश तपता है। इस बढ़ते तापमान के कारण हवा का दबाव लगातार कम होता जाता है। उधर समुद्र में अधिक भार वाली हवा अपने साथ समुद्र की नमी बटोर कर कम दबाव वाले भागों की तरफ उड़ चलती है। इसी हवा को मानसून कहते हैं।

राजस्थान के आकाश में मानसून की हवा दो तरफ से आती है। एक पास से, यानी अरब सागर से और दूसरी दूर बंगाल की खाड़ी से। दो तरफ से आए बादल भी यहां के कुछ हिस्सों में उतना पानी नहीं बरसा पाते, जितना वे रास्ते में हर कहीं बरसाते आते हैं।