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गोला-बारूद


है। इससे मेरी दलीलको धक्का नहीं पहुँचता। उन्होंने बेकार (चीज) पानेका सोचा और उसे पाया। मतलब यह कि उन्होंने अपनी मुराद पूरी की। साधन[१] क्या था, इसकी चिन्ता हम क्यों करें? अगर हमारी मुराद अच्छी हो तो क्या उसे हम चाहे जिस साधनसे, मार-काट करके भी, पूरा नहीं करेंगे? चोर मेरे घरमें घुसे तब क्या मैं साधनका विचार करूंगा? मेरा धर्म[२] तो उसे किसी भी तरह बाहर निकालनेका ही होगा।

ऐसा लगता है कि आप यह तो कबूल करते हैं कि हमें सरकारके पास अरजियाँ भेजनेसे कुछ नहीं मिला है और न आगे कभी मिलनेवाला है। तो फिर उन्हें मारकर हम क्यों न लें? ज़रूरत हो उतनी मारका डर हम हमेशा बनाये रखेंगे। बच्चा अगर आगमें पैर रखे और उसे आगसे बचानेके लिए हम उस पर रोक लगायें, तो आप भी इसे दोष नहीं मानेंगे। किसी भी तरह हमें अपना काम पूरा कर लेना है।

संपादक : आपने दलील तो अच्छी की। वह ऐसी है कि बहुतोंने उससे धोखा खाया है। मैं भी ऐसी ही दलील करता था। लेकिन अब मेरी आँखें खुल गई हैं और मैं अपनी गलती समझ सकता हूँ। आपको वह गलती बतानेकी कोशिश करूँगा।

पहले तो इस दलील पर विचार करें कि अंग्रेजोंने जो कुछ पाया वह मार-काट करके पाया, इसलिए हम भी वैसा ही करके मनचाही चीज पायें। अंग्रेजोंने मारकाट की और हम भी कर सकते हैं, यह बात तो ठीक है। लेकिन मार-काटसे जैसी चीज उन्हें मिली वैसी ही हम भी ले सकते हैं। आप कबूल करेंगे कि वैसी चीज हमें नहीं चाहिये।

आप मानते हैं कि साधन और साध्य-ज़रिया और मुराद-के बीच कोई संबंध नहीं है। यह बहुत बड़ी भूल है। इस भूलके कारण जो लोग धार्मिक[३] कहलाते हैं, उन्होंने घोर कर्म किये हैं। यह तो धतूरेका पौधा लगाकर मोगरेके फूलकी इच्छा करने जैसा हुआ। मेरे लिए समुद्र पार करनेका साधन जहाज ही हो सकता है। अगर मैं पानीमें बैलगाड़ी डाल दूँ तो वह गाड़ी और मैं दोनों समुद्रके तले पहुँच जायेंगे। जैसे देव वैसी पूजा-यह वाक्य[४] बहुत सोचने

  1. ज़रिया।
  2. फ़र्ज।
  3. दीनदार।
  4. फ़िकरा।