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हिन्द स्वराज्य


उन्होंने देखा कि राजाओं और उनकी तलवारके बनिस्बत नीतिका बल ज्यादा बलवान है। इसलिए उन्होंनें राजाओंको नीतिवान पुरूषों-ऋषियों और फ़कीरों-से कम दर्जेका माना।

ऐसी जिस राष्ट्रकी गठन है वह राष्ट्र दूसरोंको सिखाने लायक है; वह दूसरा से सीखने लायक नहीं है।

इस राष्ट्रमें अदालतें थीं, वकील थे, डॉक्टर-वैद्य थे। लेकिन वे सब ठीक ढंगसे नियमके मुताबिक चलते थे। सब जानते थे कि ये धन्धे बड़े नहीं हैं। और वकील, डॉक्टर वगैरा लोगोंमें लूट नहीं चलाते थे; वे तो लोगोंके आश्रित[१] थे। वे लोगोंके मालिक बनकर नहीं रहते थे। इन्साफ़ काफी अच्छा होता था। अदालतोंमें न जाना, यह लोगोंका ध्येय[२] था। उन्हें भरमानेवाले स्वार्थी लोग नहीं थे। इतनी सड़न भी सिर्फ़ राजा और राजधानीके आसपास ही थी। यों (आम) प्रजा तो उससे स्वतंत्र रहकर अपने खेतका मालिकी हक भोगती थी। उसके पास सच्चा स्वराज्य था।

और जहाँ यह चांडाल[३] सभ्यता नहीं पहुँची है, वहाँ हिन्दुस्तान आज भी वैसा ही है। उसके सामने आप अपने नये ढोंगोंकी बात करेंगे, तो वह आपकी हँसी उड़ायेगा। उस पर न तो अंग्रेज राज करते हैं, न आप कर सकेंगे।

जिन लोगोंके नाम पर हम बात करते हैं, उन्हें हम पहचानते नहीं हैं, न वे हमें पहचानते हैं। आपको और दूसरोंको, जिनमें देशप्रेम है, मेरी सलाह है कि आप देशमें-जहां रेलकी बाढ़ नहीं फैली है उस भागमें-छह माहके लिए घूम आयें और बादमें देशकी लगन लगायें, बादमें स्वराज्यकी बात करें।

अब आपने देखा कि सच्ची सभ्यता मैं किस चीजको कहता हूँ। ऊपर मैंने जो तसवीर खींची है वैसा हिन्दुस्तान जहाँ हो वहाँ जो आदमी फेरफार करेगा उसे आप दुश्मन समझिये। वह मनुष्य पापी है।

पाठक : आपने जैसा बताया वैसा ही हिन्दुस्तान होता तब तो ठीक था। लेकिन जिस देशमें हजारों बाल-विधवायें हैं, जिस देशमें दो बरसकी बच्चीकी

  1. पनाहगीर।
  2. मक़सद।
  3. शैतानी।