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हिन्दुस्तानकी दशा-२

संपादक : यह आपकी भूल ही है। आपको अंग्रेजोंने सिखाया है कि आप एक-राष्ट्र नहीं थे और एक-राष्ट्र बननेमें आपको सैकड़ों बरस लगेंगे। यह बात बिलकुल बेबुनियाद है। जब अंग्रेज हिन्दुस्तानमें नहीं थे तब हम एक-राष्ट्र थे, हमारे विचार एक थे, हमारा रहन-सहन एक था। तभी तो अंग्रजोंने यहां एक-राज्य क़ायम किया। भेद तो हमारे बीच बादमें उन्होंने पैदा किये।

पाठक : यह बात मुझे ज्यादा समझनी होगी।

संपादक : मैं जो कहता हूँ वह बिना सोचे-समझे नहीं कहता। एक-राष्ट्रका यह अर्थ नहीं कि हमारे बीच कोई मतभेद नहीं था; लेकिन हमारे मुख्य लोग पैदल या बैलगाड़ीमें हिन्दुस्तानका सफ़र करते थे, वे एक-दूसरेकी भाषा सीखते थे और उनके बीच कोई अन्तर नहीं था। जिन दूरदर्शी[१] पुरुषोंने सेतुबंध रामेश्वर, जगन्नाथपुरी और हरद्वारकी यात्रा ठहराई,[२] उनका आपकी रायमें क्या ख़याल होगा? वे मूर्ख नहीं थे, यह तो आप कबूल करेंगे। वे जानते थे कि ईश्वर-भजन घर बैठे भी होता है। उन्हींने हमें यह सिखाया है कि मन चंगा तो कठौतीमें गंगा। लेकिन उन्होंने सोचा कि क़ुदरतने हिन्दुस्तानको एक-देश बनाया है, इसलिए वह एक-राष्ट्र होना चाहिये। इसलिए उन्होंने अलग अलग स्थान तय करके लोगोंको एकताका विचार इस तरह दिया, जैसा दुनियामें और कहीं नहीं दिया गया है। दो अंग्रेज जितने एक नहीं हैं उतने हम हिन्दुस्तानी एक थे और एक हैं। सिर्फ़ हम और आप जो खुदको सभ्य मानते हैं उन्हींके मनमें ऐसा आभास (भ्रम) पैदा हुआ कि हिन्दुस्तानमें हम अलग अलग राष्ट्र हैं । रेलके कारण हम अपनेको अलग राष्ट्र मानने लगे और रेलके कारण एक-राष्ट्रका ख़याल फिरसे हमारे मन में आने लगा, ऐसा आप मानें तो मुझे हर्ज नहीं है। अफ़ीमची कह सकता है कि अफ़ीमके नुकसानका पता मुझे अफ़ीमसे चला, इसलिए अफ़ीम अच्छी चीज है। यह सब आप अच्छी तरह सोचिये। अभी आपके मनमें और भी शंकाएं उठेंगी। लेकिन आप खुद उन सबको हल कर सकेंगे।

  1. दूरंदेश।
  2. निश्चित की।