पृष्ठ:Hind swaraj- MK Gandhi - in Hindi.pdf/५७

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२६
हिन्द स्वराज्य

संपादक : आप जरा सोचेंगे तो मालूम होगा कि उनका त्रास बहुत कम था। अगर सचमुच उनका त्रास भयंकर होता, तो प्रजाका जड़मूलसे कभीका नाश हो जाता। और, हालकी शान्ति तो नामको ही है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि इस शान्तिसे हम नामर्द, नपुंसक और डरपोक बन गये हैं। भीलों और पिंडारियोंका स्वभाव अंग्रेजोंने बदल दिया है, ऐसा हम न मान लें । हम पर ऐसा जुल्म होता हो तो हमें उसे बरदाश्त करना चाहिये। लेकिन दूसरे लोग हमें उस जुल्मसे बचावें, यह तो हमारे लिए बिलकुल कलंक[१] जैसा है। हम कमजोर और डरपोक बनें, इससे तो भीलोंके तीर-कमानसे मरना मुझे ज्यादा पसंद है। उस हालतमें जो हिन्दुस्तान था, उसका जोश कुछ दूसरा ही था। मैकॉलेने हिन्दुस्तानियोंको नामर्द माना, वह उसकी अधम अज्ञान दशाको बताता है। हिन्दुस्तानी नामर्द कभी नहीं थे। यह जान लीजिये कि जिस देशमें पहाड़ी लोग बसते हैं, जहाँ बाघ-भेड़िये रहते हैं, उस देशके रहनेवाले अगर सचमुच डरपोक हों तो उनका नाश ही हो जाये। आप कभी खेतोंमें गये हैं? मैं आपसे यकीनन् कहता हूँ कि खेतोंमें हमारे किसान आज भी निर्भय[२] होकर सोते हैं, जब कि अंग्रेज और आप वहाँ सोनेके लिए आनाकानी करेंगे। बल तो निर्भयता[३] में है; बदन पर मांसके लोंदे होनेमें बल नहीं है। आप थोड़ा भी सोचेगे तो इस बातको समझ जायेंगे।

और आपको, जो स्वराज्य चाहनेवाले हैं, मैं सावधान[४] करता हूँ कि भील, पिंडारी और ठग ये सब हमारे ही देशी भाई हैं। उन्हें जीतना मेरा और आपका काम है। जब तक आपके ही भाईका डर आपको रहेगा, तब तक आप कभी मक़सद हासिल नहीं कर सकेंगे।[[category:हिन्द स्वराज]

  1. दाग।
  2. निडर।
  3. निडरता।
  4. आगाह।