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हिन्दुस्तानकी दशा -- १

पाठक : हिन्दुस्तान अंग्रेजोंके हाथमें क्यों है, यह समझा जा सकता है। अब मैं हिन्दुस्तानकी हालतके बारेमें आपके विचार जानना चाहता हूँ।

संपादक : आज हिन्दुस्तानकी रंक[१] दशा है। यह आपसे कहते हुए मेरी आँखोंमें पानी भर आता है और गला सूख जाता है। यह बात मैं आपको पूरी तरह समझा सकूँगा या नहीं, इस बारेमें मुझे शक है। मेरी पक्की राय है, कि हिन्दुस्तान अंग्रेजोंसे नहीं, बल्कि आजकलकी सभ्यता[२]से कुचला जा रहा है, उसकी चपेटमें वह फँस गया है। उसमें से बचनेका अभी भी उपाय है, लेकिन दिन-ब-दिन समय बीतता जा रहा है। मुझे तो धर्म प्यारा है; इसलिए पहला दुख मुझे यह है कि हिन्दुस्तान धर्मभ्रष्ट होता जा रहा है। धर्मका अर्थ मैं यहां हिन्दू, मुस्लिम या जरथोस्ती धर्म नहीं करता। लेकिन इन सब धर्मोंके अन्दर जो 'धर्म' है वह हिन्दुस्तानसे जा रहा है; हम ईश्वरसे विमुख[३] होते जा रहे हैं।

पाठक : सो कैसे?

संपादक : हिन्दुस्तान पर यह तोहमत है कि हम आलसी हैं और गोरे लोग मेहनती और उत्साही[४] हैं। इसे हमने मान लिया है। इसलिए हम अपनी हालतको बदलना चाहते हैं।

हिन्दू, मुस्लिम, जरथोस्ती, ईसाई सब धर्म सिखाते हैं कि हमें दुनियवी बातोंके बारे में मंद[५] और धार्मिक[६] बातोंके बारेमें उत्साही रहना चाहिये। हमें अपने दुनियवी लोभकी हद बाँधनी चाहिये और धार्मिक लोभको खुला छोड़ देना चाहिये। हमारा उत्साह[७] धार्मिक लोभमें ही रहना चाहिये।

पाठक : इससे तो मालूम होता है कि आप पाखंडी[८] बननेकी तालीम देते हैं। धर्मके बारेमें ऐसी बातें करके ठग लोग दुनियाको ठगते आये हैं और आज भी ठग रहे हैं।

२४

  1. कंगाल।
  2. तहजीब।
  3. अलग।
  4. पुरजोश।
  5. सुस्त।
  6. दीनी।
  7. जोश।
  8. ढोंगी।