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हिन्दुस्तान कैसे गया?

पाठक : आपने सभ्यताके बारेमें बहुत कुछ कहा; और मुझे विचारमें डाल दिया। अब तो मैं इस संकट[१]में आ पड़ा हूँ कि यूरोपकी प्रजासे मैं क्या लूँं और क्या न लूँ। लेकिन एक सवाल मेरे मनमें तुरन्त उठता है: अगर आजकी सभ्यता बिगाड़ करनेवाली है, एक रोग है, तो ऐसी सभ्यतामें फँसे हुए अंग्रेज हिन्दुस्तानको कैसे ले सके? इसमें वे कैसे रह सकते हैं?

संपादक : आपके इस सवालका जवाब कुछ आसानीसे दिया जा सकेगा और अब थोड़ी देरमें हम स्वराज्यके बारेमें भी विचार कर सकेंगे। आपके इस सवालका जवाब अभी देना बाकी है, यह मैं भूला नहीं हूँ। लेकिन आपके आखिरी सवाल पर हम आयें। हिन्दुस्तान अंग्रेजोंने लिया सो बात नहीं है, बल्कि हमने उन्हें दिया है। हिन्दुस्तानमें वे अपने बलसे नहीं टिके हैं, बल्कि हमने उन्हें टिका रखा है। वह कैसे सो देखें। आपको मैं याद दिलाता हूँ कि हमारे देशमें वे दरअसल व्यापारके लिए आये थे। आप अपनी कंपनी बहादुरको याद कीजिये। उसे बहादुर किसने बनाया? वे बेचारे तो राज करनेका इरादा भी नहीं रखते थे। कंपनीके लोगों की मदद किसने की? उनकी चाँदीको देखकर कौन मोहमें पड़ जाता था? उनका माल कौन बेचता था? इतिहास[२] सबूत देता है कि यह सब हम ही करते थे। जल्दी पैसा पानेके मतलबसे हम उनका स्वागत करते थे। हम उनकी मदद करते थे। मुझे भांग पीनेकी आदत हो और भांग बेचनेवाला मुझे भांग बेचे, तो क़सूर बेचनेवालेका निकालना चाहिये या अपना खुदका? बेचनेवालेका क़सूर निकालनेसे मेरा व्यसन[३] थोड़े ही मिटनेवाला है? एक बेचनेवालेको भगा देंगे तो क्या दूसरे मुझे भांग नहीं बेचेंगे? हिन्दुस्तानके सच्चे सेवकको अच्छी तरह खोज करके इसकी जड़ तक पहुँचना होगा। ज्यादा खानेसे अगर मुझे अजीर्ण[४] हुआ हो, तो मैं पानीका दोष निकाल कर अजीर्ण दूर नहीं कर सकूँगा। सच्चा डॉक्टर

२१

  1. पसोपेश, दुविधा।
  2. तवारीख।
  3. लत, कुटेव।
  4. बदहजमी।