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इंग्लैंडकी हालत

पाठक: आप जो कहते हैं उस परसे तो मैं यही अंदाज लगाता हूँ कि इंग्लैंडमें जो राज्य चलता है वह ठीक नहीं है और हमारे लायक नहीं है।

संपादक: आपका यह ख़याल सही है। इंग्लैंडमें आज जो हालत है वह सचमुच दयनीय-तरस खाने लायक है। मैं तो भगवानसे यही माँगता हूँ कि हिन्दुस्तानकी ऐसी हालत कभी न हो। जिसे आप पार्लियामेन्टोंकी माता कहते हैं, वह पार्लियामेन्ट तो बांझ और बेसवा[१] है। ये दोनों शब्द बहुत कड़े हैं, तो भी उसे अच्छी तरह लागू होते हैं। मैंने उसे बांझ कहा, क्योंकि अब तक उस पार्लियामेन्टने अपने आप एक भी अच्छा काम नहीं किया। अगर उस पर जोर-दबाव डालनेवाला कोई न हो तो वह कुछ भी न करे, ऐसी उसकी कुदरती हालत है। और वह बेसवा है क्योंकि जो मंत्री-मंडल उसे रखे उसके पास वह रहती है। आज उसका मालिक एस्क्विथ है, तो कल बालफर होगा और परसों कोई तीसरा।

पाठक: आपके बोलनेमें कुछ व्यंग्य[२] है। बांझ शब्दको अब तक आपने लागू नहीं किया। पार्लियामेन्ट लोगोंकी बनी है, इसलिए बेशक लोगोंके दबावसे ही वह काम करेगी। वही उसका गुण[३] है, उसके ऊपरका अंकुश[४] है।

संपादक: यह बड़ी गलत बात है। अगर पार्लियामेन्ट बांझ न हो तो इस तरह होना चाहिये-लोग उसमें अच्छेसे अच्छे मेम्बर चुनकर भेजते हैं। मेम्बर तनख्वाह नहीं लेते, इसलिए उन्हें लोगोंकी भलाईके लिए (पार्लियामेन्टमें) जाना चाहिये। लोग खुद सुशिक्षित-संस्कारी[५] माने जाते हैं, इसलिए उनसे भूल नहीं होती ऐसा हमें मानना चाहिये। ऐसी पार्लियामेन्टको अर्जीकी ज़रूरत नहीं होनी चाहिये, न दबावकी। उस पार्लियामेन्टका काम इतना सरल होना चाहिये कि दिन-ब-दिन उसका तेज बढ़ता जाय और लोगों

१३

  1. वेश्या।
  2. भेद।
  3. सिफ़त।
  4. काबू।
  5. तालीमयाफ़्ता।