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बंग-भंग

पाठक: आप कहते हैं उस तरह विचार करने पर यह ठीक लगता है कि कांग्रेसने स्वराज्यकी नींव डाली। लेकिन यह तो आप मानेंगे कि वह सही जागृति[१] नहीं थी। सही जागृति कब और कैसे हुई?

संपादक: बीज हमेशा हमें दिखाई नहीं देता। वह अपना काम ज़मीनके नीचे करता है और जब खुद मिट जाता है तब पेड़ ज़मीनके ऊपर देखनेमें आता है। कांग्रेसके बारेमें ऐसा ही समझिये। जिसे आप सही जागृति मानते हैं वह तो बंग-भंगसे हुई, जिसके लिए हम लॉर्ड कर्ज़नके आभारी हैं। बंग-भंगके वक्त बंगालियोंने कर्जन साहबसे बहुत प्रार्थना की, लेकिन वे साहब अपनी सत्ताके मदमें लापरवाह रहे। उन्होंने मान लिया कि हिन्दुस्तानी लोग सिर्फ बकवास ही करेंगे, उनसे कुछ भी नहीं होगा । उन्होंने अपमानभरी भाषाका प्रयोग किया और ज़बरदस्ती बंगालके टुकड़े किये। हम यह मान सकते हैं कि उस दिनसे अंग्रेजी राज्यके भी टुकड़े हुए। बंग-भंगसे जो धक्का अंग्रेजी हुकूमतको लगा, वैसा और किसी कामसे नहीं लगा । इसका मतलब यह नहीं कि जो दूसरे गैर-इन्साफ़ हुए, वे बंग-भंगसे कुछ कम थे। नमक-महसूल कुछ कम गैर-इन्साफ़ नहीं है। ऐसा और तो आगे हम बहुत देखेंगे। लेकिन बंगालके टुकड़े करनेका विरोध[२] करनेके लिए प्रजा तैयार थी। उस वक्त प्रजाकी भावना बहुत तेज़ थी। उस समय बंगालके बहुतेरे नेता अपना सब कुछ न्यौछावर करनेको तैयार थे। अपनी सत्ता, अपनी ताकतको वे जानते थे। इसलिए तुरन्त आग भड़क उठी। अब वह बुझनेवाली नहीं है, उसे बुझानेकी ज़रूरत भी नहीं है। ये टुकड़े क़ायम नहीं रहेंगे, बंगाल फिर एक हो जायगा। लेकिन अंग्रेजी जहाजमें जो दरार पड़ी है, वह तो हमेशा रहेगी ही। वह दिन-ब-दिन चौड़ी होती जायगी। जागा हुआ हिन्द फिर सो जाय, वह

  1. जाग।
  2. मुखालिफ़त।