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कांग्रेस और उसके कर्ता-धर्ता


किया? वे तो कहते हैं कि अंग्रेज राजकर्ता न्याय करेंगे और उनसे हमें हिलमिल कर रहना चाहिये।

संपादक: मुझे सविनय[१] आपसे कहना चाहिये कि उस पुरुषके बारेमें आपका बेअदबीसे यों बोलना हमारे लिए शरम की बात है। उनके कामोंकी ओर देखिये । उन्होंने अपना जीवन हिन्दको अर्पण[२] कर दिया है। उनसे यह सबक हमने सीखा। हिन्दका खून अंग्रेजोंने चूस लिया है, यह सिखानेवाले माननीय दादाभाई हैं। आज उन्हें अंग्रेजों पर भरोसा है उससे क्या? हम जवानी के जोशमें एक कदम आगे रखते हैं, इससे क्या दादाभाई कम पूज्य हो जाते हैं? इसे क्या हम ज्यादा ज्ञानी हो गये? जिस सीढ़ी से हम ऊपर चढ़े उसको लात न मारनेमें ही बुद्धिमानी[३] है। अगर वह सीढ़ी निकाल दें तो सारी निसैनी गिर जाय, यह हमें याद रखना चाहिये। हम बचपनसे जवानीमें आते हैं तब बचपनसे नफरत नहीं करते, बल्कि उन दिनोंको प्यारसे याद करते हैं । बरसों तक अगर मुझे कोई पढ़ाता है और उससे मेरी जानकारी जरा बढ़ जाती है, तो इससे मैं अपने शिक्षक[४] से ज्यादा ज्ञानी नहीं माना जाऊंगा; अपने शिक्षकको तो मुझे मान[५] देना ही पड़ेगा। इसी तरह हिन्दके दादाके बारेमें समझना चाहिये। उनके पीछे (सारी) हिन्दुस्तानी जनता है, यह तो हमें कहना ही पड़ेगा।

पाठक: यह आपने ठीक कहा । दादाभाई नौरोजीकी इज़्ज़त करना चाहिये, यह तो समझ सकते हैं। उन्होंने और उनके जैसे दूसरे पुरुषोंने जो काम किये हैं, उनके बगैर हम आजका जोश महसूस नहीं कर पाते, यह बात ठीक लगती है। लेकिन यही बात प्रोफेसर गोखले साहबके बारेमें हम कैसे मान सकते हैं? वे तो अंग्रेजोंके बड़े भाईबंद बन कर बैठे हैं; वे तो कहते हैं कि अंग्रजोंसे हमें बहुत कुछ सीखना है। अंग्रेजोंकी राजनीतिसे हम वाकिफ़ हो जायं, तभी स्वराज्यकी बातचीत की जाय। उन साहबके भाषणोंसे तो मैं ऊब गया हूँ।

  1. अदबसे।
  2. नज़र।
  3. अक़्लमंदी।
  4. उस्ताद।
  5. इज़्ज़त।