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हिन्द स्वराज्य


कर रहे हैं वह भी नहीं कर पाते। मि॰ ह्यूमने जो लेख लिखे, जो फटकारें हमें सुनाईं, जिस जोशसे हमें जगाया, उसे कैसे भुलाया जाय? सर विलियम वेडरबर्नने कांग्रेसका मकसद हासिल करनेके लिए अपना तन, मन और धन सब दे दिया था। उन्होंने अंग्रेजी राज्यके बारेमें जो लेख लिखे हैं, वे आज भी पढ़ने लायक हैं। प्रोफेसर गोखलेने जनताको तैयार करने के लिए, भिखारीके जैसी हालत में रहकर, अपने बीस साल दिये हैं। आज भी वे गरीबीमें रहते हैं। मरहूम जस्टिस बदरुद्दीनने भी कांग्रेस के ज़रिये स्वराज्यका बीज बोया था। यों बंगाल, मद्रास, पंजाब वगैरामें कांग्रेसका और हिंदका भला चाहनेवाले कई हिन्दुस्तानी और अंग्रेज लोग हो गये हैं, यह याद रखना चाहिये।

पाठक: ठहरिये, ठहरिये। आप तो बहुत आगे बढ़ गये। मेरा सवाल कुछ है और आप जवाब कुछ और दे रहे हैं। मैं स्वराज्यकी बात करता हूँ और आप परराज्यकी बात करते हैं। मुझे अंग्रेजों का नाम तक नहीं चाहिये और आप तो अंग्रेजों के नाम देने लगे। इस तरह तो हमारी गाड़ी राह पर आये, ऐसा नहीं दिखता। मुझे तो स्वराज्यकी ही बातें अच्छी लगती हैं। दूसरी मीठी सयानी बातों से मुझे संतोष नहीं होगा।

संपादक: आप अधीर हो गये हैं। मैं अधीरपन बरदाश्त नहीं कर सकता। आप जरा सब्र करेंगे तो आपको जो चाहिये वही मिलेगा। ‘उतावलीसे आम नहीं पकते, दाल नहीं चुरती'-यह कहावत याद रखिये। आपने मुझे रोका और आपको हिन्द पर उपकार करनेवालोंकी बात भी सुननी अच्छी नहीं लगती, यह बताता है कि अभी आपके लिए स्वराज्य दूर है। आपके जैसे बहुतसे हिन्दुस्तानी हों, तो हम (स्वराज्यसे) दूर हट कर पिछड़ जायेंगे। वह बात जरा सोचने लायक है।

पाठक: मुझे तो लगता है कि ये गोल-मोल बातें बनाकर आप मेरे सवाल का जवाब उड़ा देना चाहते हैं। आप जिन्हें हिन्दुस्तान पर उपकार करनेवाले मानते हैं, उन्हें मैं ऐसा नहीं मानता; फिर मुझे किसके उपकारकी बात सुननी है? आप जिन्हें हिन्दके दादा कहते हैं, उन्होंने क्या उपकार