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कांग्रेस और उसके कर्ता-धर्ता

पाठक: आजकल हिंदुस्तानमें स्वराज्यकी हवा चल रही है। सब हिंदुस्तानी आज़ाद होनेके लिए तरस रहे हैं। दक्षिण अफ्रिकामें भी वही जोश दिखाई दे रहा है। हिंदुस्तानियोंमें अपने हक पानेकी बड़ी हिम्मत आई हुई मालूम होती है। इस बारेमें क्या आप अपने ख़याल बतायेंगे?

संपादक: आपने सवाल ठीक पूछा है। लेकिन इसका जवाब देना आसान बात नहीं है। अखबारका एक काम तो है लोगोंकी भावनायें जानना और उन्हें ज़ाहिर करना; दूसरा काम है लोगोंमें अमुक ज़रूरी भावनायें पैदा करना; और तीसरा काम है लोगोंमें दोष हों तो चाहे जितनी मुसीबतें आने पर भी बेधड़क होकर उन्हें दिखाना। आपके सवालका जवाब देनेमें ये तीनों काम साथ-साथ आ जाते हैं। लोगोंकी भावनायें कुछ हद तक बतानी होंगी, न हों वैसी भावनायें उनमें पैदा करनेकी कोशिश करनी होगी और उनके दोषोंकी निंदा भी करनी होगी। फिर भी आपने सवाल किया है, इसलिए उसका जवाब देना मेरा फ़र्ज मालूम होता है।

पाठक: क्या स्वराज्यकी भावना हिन्दमें पैदा हुई आप देखते हैं?

संपादक: वह तो जबसे नेशनल कांग्रेस कायम हुई तभीसे देखनेमें आई है। 'नेशनल' शब्दका अर्थ ही वह विचार ज़ाहिर करता है।

पाठक: यह तो आपने ठीक नहीं कहा। नौजवान हिन्दुस्तानी आज कांग्रेसकी परवाह ही नहीं करते। वे तो उसे अंग्रेजोंका राज्य निभानेका साधन[१] मानते हैं।

संपादक: नौजवानोंका ऐसा ख़याल ठीक नहीं है। हिन्दके दादा दादाभाई नौरोजीने ज़मीन तैयार नहीं की होती, तो नौजवान आज जो बातें

  1. औज़ार, ज़रिया।