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हुई है ऐसे बहुतेरे हिन्दुस्तानियोंके हैं। लेकिन यही विचार यूरोपके हजारों लोगोंके हैं, यह मैं अपने पाठकोंके मनमें अपने सबूतोंसे ही जंचाना चाहता हूं। जिसे इसकी खोज करनी हो, जिसे ऐसी फ़ुरसत हो, वह आदमी वे किताबें देख सकता है। अपनी फ़ुरसतसे उन किताबोंमें से कुछ न कुछ पाठकोंके सामने रखनेकी मेरी उम्मीद है।

'इण्डियन ओपीनियन' के पाठकों या औरोंके मनमें मेरे लेख पढ़कर जो विचार आयें, उन्हें अगर वे मुझे बतायेंगे तो मैं उनका आभारी रहूँगा।

उद्देश्य सिर्फ देशकी सेवा करनेका और सत्यकी खोज करनेका और उसके मुताबिक बरतनेका है। इसलिए अगर मेरे विचार गलत साबित हों, तो उन्हें पकड़ रखनेका मेरा आग्रह नहीं है। अगर वे सच साबित हों तो दूसरे लोग भी उनके मुताबिक बरतें, ऐसी देशके भलेके लिए साधारण तौर पर मेरी भावना रहेगी।

सुमीतेके लिए लेखोंको पाठक और संपादकके बीचके संवादका रूप दिया गया है।

किलडोनन कैसल,

२२-११-१९०९

मोहनदास करमचंद गांधी