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पानीमें डुबो दिया जाय। ... यों हमें इस बारेमें गांधीजीके बनिस्वत ईसा मसीहकी ओरसे ज़्यादा मदद मिलती है...।'

मुझे लगता है, ईसा मसीहके वचन सिर्फ उनका पुण्य-प्रकोप[१] प्रकट करते हैं, और उन्होंने जो कदम उठानेकी बात कही है, वह गुनहगारोंको कोई और आदमी सजा करे इसलिए नहीं, बल्कि गुनहगार खुद अपनेको प्रायश्चित्त[२] के तौर पर सजा दे इसलिए है। और क्या कुमारी रैथबोनको पक्का यकीन है कि जिसे वो ईसाका उपाय मानती हैं, उसे आजमाकर वे बालकोंको मौतसे बचा सकेंगी? गांधीजीने यह सवाल उठाया ही नहीं है, ऐसा उनका मानना सही नहीं है। उन्होंने यह सवाल उठाया है और उसका साफ़ साफ़ जवाब भी दिया है; जैसे १३०० बरस पहले उन अमर मुस्लिम शहीदोंने भी यह सवाल उठाया था और अपने कामसे उसका जवाब दिया था। जालिमके सामने झुकने और अपनी अंतर-आत्माको धोखा देनेके बजाय अपने बीबी-बच्चोंको भूखे-प्यासे तड़पते हुए मरने देना ही उन्होंने ज्यादा पसन्द किया था; क्योंकि जालिमके सामने झुकने और अपनी अंतर-आत्माको धोखा देनेका परिणाम यही होता है कि जालिमको नये नये जुल्म गुजारनेका बढ़ावा मिलता है।।

लेकिन कुमारी रैथबोनने भी 'हिन्द स्वराज्य'को 'बहुत भारी असरकारक पुस्तक' कहा है और लिखा है कि ‘उसे पढ़कर, उसमें रही भारी प्रामाणिकता[३] को देखकर अपनी प्रामाणिकताकी जांच करना मेरे लिए ज़रूरी हो गया है। लोगोंसे मेरी बिनती है कि वे इस पुस्तकको ज़रूर पढे़।' ‘आर्यन पाथ' मासिकके संपादकोंने यह ‘हिन्द स्वराज्य अंक' निकालकर शांति और अहिंसाके कार्यकी निर्विवाद[४] सेवा की है, ऐसा हमें कहना होगा।

महादेव हरिभाई देसाई

(अंग्रेजीके गुजराती अनुवाद परसे)

  1. पाक गुस्सा।
  2. कफ़्फ़ारा।
  3. ईमानदारी।
  4. ख़सूसन्, बेशक।