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आजमाई, उसीके ज़रिये अगर चीन अपनी रक्षा करनेकी कोशिश करेगा-और गांधीजीकी वह रीति चीनके महान धर्म-गुरुओंके उपदेशसे बहुत ज्यादा मेल खाती है-तो मैं बेधड़क कहूँगा कि यूरोपके शस्त्रयुद्धकी रीतिकी नकल करनेके बजाय इस अहिंसाकी रीतिसे उसे बहुत ज्यादा सफलता मिलेगी।...चीनकी जनता, जो जगतकी सबसे ज्यादा शांतिप्रिय प्रजा है, जगतकी किसी भी लड़ाकू प्रजाके बनिस्बत ज़्यादा लंबे अरसे तक अपनेको और अपनी संस्कृतिको कायम रख सकी है, यह हक़ीक़त ही मानव-जातिके लिए एक सबक़ है। जो शूरवीर चीनी अपने देशके बचावके लिए लड़ रहे हैं, उनके लिए हमें आदर नहीं है ऐसा आप न मानें। हम उनके त्याग और बलिदानकी भारी कदर करते हैं और समझते हैं कि वे हमसे भिन्न सिद्धान्तोंमें माननेवाले हैं। फिर भी हम तो मानते हैं कि हिंसा सब संजोगों में बुरी है और उसमें से अच्छे फल निकलना असंभव है। अहिंसाका पालन आपको तमाम दुखोंसे उबार तो नहीं लेगा, लेकिन मैं मानता हूँ कि आपके सब शस्त्र-अस्त्रों और लश्करोंके बनिस्बत अहिंसा एक अरसेके बाद आपके भावी विजेताके ख़िलाफ़ ज़्यादा असरकारक साबित होगी; और सबसे ज्यादा महत्त्वकी[१] बात तो यह है कि इससे आपकी प्रजाके आदर्श जीवित रहेंगे।'

कुमारी रैथबोनने ऐसी ही एक समस्या[२] रखी है। वे लिखती है: 'जालिमके सामने सिर झुकाकर और अपनी अंदरकी आवाज़के विरुद्ध चलकर अगर छोटे मुलायम बच्चों और बच्चियोंको बचाया जा सकता हो, तो इस दुनियामें ऐसा कौन आदमी-सामान्य या संतपुरुष-है, जो उनकी हत्या होने देगा? गांधी इस सवालका जवाब नहीं देते। उन्होंने यह सवाल उठाया तक नहीं है। ...इस बारे में ईसा मसीहका कहना ज्यादा स्पष्ट[३] है। ...उनके शब्द ये हैं : मुझ पर श्रद्धा रखनेवाले इन नन्हें मुन्नोंके ख़िलाफ़ जो कोई हाथ उठाये, उसके गले में चक्कीका पाट लटकाकर उसे समुद्रके

  1. अहम।
  2. मसला, पहेली।
  3. साफ़।