पाठक : राष्ट्रसे आप क्या कहेंगे?
संपादक : राष्ट्र कौन?
पाठक : अभी तो आप जिस अर्थमें यह शब्द काममें लेते हैं उसी अर्थवाला राष्ट्र, यानी जो लोग यूरोपकी सभ्यतामें रंगे हुए हैं, जो स्वराज्यकी आवाज़ उठा रहे हैं।
संपादक : इस राष्ट्रसे मैं कहूँगा कि जिस हिन्दुस्तानीको (स्वराज्यकी) सच्ची खुमारी यानी मस्ती चढ़ी होगी, वही अंग्रेजोंसे ऊपरकी बात कह सकेगा और उनके रोबसे नहीं दबेगा।
सच्ची मस्ती तो उसीको चढ़ सकती है, जो ज्ञानपूर्वक-समझबूझकर-यह मानता हो कि हिन्दकी सभ्यता सबसे अच्छी है और यूरोपकी सभ्यता चार दिनकी चाँदनी है। वैसे सभ्यतायें तो आज तक कई हो गयीं और मिट्टीमें मिल गयीं, आगे भी कई होंगी और मिट्टीमें मिल जायेंगी।
सच्ची खुमारी उसीको हो सकती है, जो आत्मबल अनुभव करके शरीर-बलसे नहीं दबेगा और निडर रहेगा तथा सपनेमें भी तोप-बलका उपयोग करनेकी बात नहीं सोचेगा।
सच्ची खुमारी उसी हिन्दुस्तानीको रहेगी, जो आजकी लाचार हालतसे बहुत ऊब गया होगा और जिसने पहलेसे ही ज़हरका प्याला पी लिया होगा। ऐसा हिन्दुस्तानी अगर एक ही होगा, तो वह भी ऊपरकी बात अंग्रेजोंसे कहेगा और अंग्रेजोंको उसकी बात सुननी पड़ेगी।
ऊपरकी माँग माँग नहीं है; वह हिन्दुस्तानियोंके मनकी दशाको बताती है। माँगनेसे कुछ नहीं मिलेगा; वह तो हमें खुद लेना होगा। उसे लेनेकी हममें ताक़त होनी चाहिये। यह ताकत उसीमें होगी :
(१) जो अंग्रेजी भाषाका उपयोग लाचारीसे ही करेगा।
(२) जो वकील होगा तो अपनी वकालत छोड़ देगा और खुद घरमें चरखा चलाकर कपड़े बुन लेगा।
(३) जो वकील होनेके कारण अपने ज्ञानका उपयोग सिर्फ़ लोगोंको समझाने और लोगोंकी आँखें खोलनेमें करेगा।