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छुटकारा

पाठक : आपके विचारोंसे ऐसा लगता है कि आप एक तीसरा ही पक्ष कायम करना चाहते हैं। आप एक्स्ट्रीमिस्ट भी नहीं हैं और मॉडरेट भी नहीं हैं।

संपादक : यहाँ आपकी भूल होती है। मेरे मनमें तीसरे पक्षका कोई ख़याल नहीं है। सबके विचार एकसे नहीं रहते। मॉडरेटोंमें भी सब एक ही विचारके हैं, ऐसा नहीं मानना चाहिये। जिसे (लोगोंकी) सेवा ही करनी है, उसके लिए पक्ष कैसा? मैं तो मॉडरेटोंकी सेवा करूँगा और एक्स्ट्रीमिस्टोंकी भी करूँगा। जहाँ उनके विचारसे मेरी राय अलग पड़ेगी वहां मैं उन्हें नम्रतासे बताऊँगा और अपना काम करता चलूँगा।

पाठक : अगर आप दोनोंसे कहना चाहें तो क्या कहेंगे?

संपादक : एक्स्ट्रीमिस्टोंसे मैं कहूँगा कि आपका हेतु हिन्दुस्तानके लिए स्वराज्य हासिल करनेका है। स्वराज्य आपकी कोशिशसे मिलनेवाला नहीं है। स्वराज्य तो सबको अपने लिए पाना चाहिये-और सबको उसे अपना बनाना चाहिये। दूसरे लोग जो स्वराज्य दिला दें वह स्वराज्य नहीं है, बल्कि परराज्य है। इसलिए सिर्फ़ अंग्रेजोंको बाहर निकाला कि आपने स्वराज्य पा लिया, ऐसा अगर आप मानते हों तो वह ठीक नहीं है। सच्चा स्वराज्य जो मैंने पहले बताया वही होना चाहिये। उसे आप गोला-बारूदसे कभी नहीं पायेंगे। गोला-बारूद हिन्दुस्तानको सधेगा नहीं। इसलिए सत्याग्रह पर ही भरोसा रखिये। मनमें ऐसा शक भी पैदा न होने दीजिये कि स्वराज्य पानेके लिए हमें गोला-बारूदकी ज़रूरत है।

मॉडरेटोंसे मैं कहूँगा कि हम खाली आजिज़ी करना चाहें, यह तो हमारी हीनता[१] होगी। उसमें हम अपना हलकापन कबूल करते हैं। 'अंग्रेजोंसे सम्बन्ध रखना हमारे लिए ज़रूरी है'–ऐसा कहना हमारे लिए, ईश्वरके चोर बनने जैसा हो जाता है। हमें ईश्वरके सिवा और किसीकी ज़रूरत है,

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  1. कमी