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ऐसे सुरक्षिता अत्रको नष्ट करनेवालेको ५०० सुबरओ जुर्माना देना होगा। यदि अनाज् न हो तो बाडा नष्ट करनेवाला निरपराधी है। घर तालाब, बाग, खेत इत्यदिको जबरदस्ती ले लेनेवालेको ५०० सुवर्रा श्राथिक दराड-खुरुप देना चाहिये। अग्यान् भूल करनेवाले को २०० सुवर्रा जुर्माना करना चाहिये। मर्यादा उइप्ल्लन्घन करनेवाले २०० पए दराड होना चाहिये। व्राहएकी श्रपेक्षा क्षित्रयको २०० गुए श्रधिक ओर् शूद्रको बन्धान होना चाहिये। क्षत्रिय, वैश्य, श्रथावा शुद्र्की न्निदा करनेवाले वैश्यको क्रामानुसार ५०, २५ और १२ परा दंड होना चाहिये। क्षत्रियकी न्निदा करनेवाले वैश्यको पुर्ववरिगत दंड श्रौर शुद्रको जिहाच्छेद करना चाहिये। व्राह्यारा का उपदेश करनेवले शुद्रको दंड करना चाहिये। श्रौर थतदेशागदिवितथी अर्थात् बहुश्रुत बनने वालोंकों दुगना दंड करना चाहिये। निरर्थक अथवा सज्जनोंको दोप देने वालोको (उन्त्म) दंड श्रौर श्रपने दोषको स्वीकार करने वाले को श्राधा दंहड देना चाहिये। माँ-बाप, भाई वशुर, गुरु इत्यादि लोगोको गाली देने वाला और् गुरु को रस्ता न देने वाला २०० पए दंडके योग्य है। "श्रत्यजातीद्विरजातितु येनाक्रनाप ग्ध्नुयात तदे वच्धेदतस्यक्षिप्रेमवा विचारयन'। श्रन्त्यातजाति (निच जाति)त्रेवरिको का जिस श्रढ़ॣ॰ से अप्राध् करे उस श्रढ़ॣ॰का छेधन करना चाहिये। सभामे बैठे हुए राजाके सामाने गर्वसे थुकने वाले के होठ काट डालने चाहिये। उसी प्राकार से श्रपशब्द केह्ने पर उसके श्रवयवच्धेदनका उल्लेख है। "यो यवंगं च रुजयेतवंगं तस्य कर्तयेत"। सिन्हासानारुढ़ राजा के सामने जमिन पर बैठा हुआ मनुष्य यदि अपना कोई श्रढ़ॣ॰ काटना चाहोये। गाये, घोडा, हाथी, ऊँट इत्यादि पशुश्रोका घात कग्ने वाले लोगोके हात पैर काटने चाहिये। वृक्षो क्च्चे फ्लो को नष्ट करने वाले को सुवए दएड है। जानकरी अथवा श्रनजानसे जो दुसरेका द्रव्य ह्र्रए करता है, सीमा स्थित श्रथवा राजमार्गके जलाशयो श्रौर कूपो का जो नाश करता है उसे दुगुना दंड देना चाहिये। कुएँकी पौसरेका नाश करने वाला श्रयश प्रारियो का मारने वाला "एक मास" के कारावासका पात्र है। यह श्लोक मनुस्म्रुति के आधार कुछ ह्रेर फेर करके दिया है (यस्तुरज्जु घटकुपाध्द्रोच्छिन्द्यच्च ता प्रपाम। स दंड प्राप्नुयान्मास दराद्य:स्यात प्रायिताडरो॥) द्स अथवा अधिक कुम्भ अनाज ह्ररए करने वालो को म्रुत्यु दंड देना चाहिये। मनु स्म्रुतिके टीको करने कहा है कि जितने कुम्भ चुराये हो उससे ११ गुना श्रधिक श्रनाज चोरसे वसूल करना चाहिये। सोना, चान्दी उत्म वस्त्र, स्त्री, अथवा मनुष्यको चुरावे उसको प्रायएदराड देन चाहिये। "येन येन यथोगेन्स्तेनेन्रुषु विशिते। त्त देव हरेद्स्य प्रत्योदेशाय पार्थिव:॥" मनुष्यको चुराते समये उसने जिस जिस अंगको कष्ट हुआ है चोरो को उस उस अंगको काट्ना चाहिये। यदि व्राहासा शाकधाग्यकी चोरी करे तो उसे अपराधी नही समाझना चाहिये। किसी गाय अथवा इश्वर के निमत चोरी करे तो उसे 'प्रथम' शिक्षा देनी चाहिये। घर, खेत चुरानेवाला, स्त्री पर बलात्कार करने वाला, विशप्रयोग करने वाला, आग लगाने वाला अथवा असत्र वान कर चढाई करने वाला देहान्त शिक्षा का पात्र है। पर स्त्री से सन्भाश करने वाला, बिना आग्या के प्रवेश करने वाला दराड का पात्र है। स्वन्यबर दडपात्र नही है। उच्च वर्ग वाली स्त्री से सबन्ध करने वाले नीच वर्ग के मनुष्य को म्रुत्यु दंड देना चाहिये। "भतर्रर लघयेद्याताश्रिवमि सनघातयेतिश्ययम" पति को त्याग कर निकलजानेवाली स्त्री को कुत्तो से कटवा कर उसे प्राएदराड देना चाहिये। वैश्य स्त्री गामी व्राहए अन्त्यज गामी अत्रीय पूर्व दंड की पात्र है। सवए दुशित स्त्री को "पिन्डयात्रोपजीवि" करना चाहिये। "ज्यायसा" दुशित नारी(व्रुद्धुसे दुशित) को मुराडनकी शिकक्षा होनी चाहिये। धन के लोभ से दुसरे के साथ गम्न करने वाली स्त्री उस धन की दुगुनेकी पात्र् है। भार्या, पुत्र, दास, शिश्य, भाई अथवा सोदर अपराधी हो तो वेतकी छ्डीसे पीठ पर शिकक्षा करनी चाहिये, मस्तक पर नही मारना चाहिये। यदि प्रजाके रक्शर्थ नियत किये हूए अधीकारियोको घूस ली गयी हो तो(रक्शथ्र्क्रुत) तो उनकी सारी जायदाद जप्त उनको निकाल देना चाहिये। जिस काम पर राजा मनुष्यको नियुक्त कर और यदि उस काम मै लोग बाधा डाले तो उनको भी उपयुक्त शिकक्षा देनी चाहिये। आत्मा अथवा न्यायाधीश यदि (प्राड्विवका) आपना कर्तव्य आयोग्यतासे करे तो उसके लिये भी ऊपर