यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

नाम है परन्तु यह कहा है इसका ठीक टीक पता नही है। अ २०१ मे नवव्युहार्चन अ २०२ मे पुश्प वर्ग कथन। देवताओकी पूजा के योग्य तरह तरहके पुश्प का वर्णन। अ २०३ मे नरक वर्णन स २०४ मे मासोपमास व्रत। स २०५ मे भीश्म पन्चक व्रत। स २०६ मे अगस्थार्च कथन। स २०७ मे कोमुद व्रत। स २०८ मे व्रतदानादी समुच्चय। दान मीमासा स २०९ मे दान परिभाशा कथन। स २१० मे महादान विधि। स २११ मे अनेक प्रकार के दान। जिनके पास दस गाये है उनको एक गौदान करनी चाहिये।इस प्रकार द्शाश का प्रकार है। यहा उल्लिखितमहिप दान का और कही जिक्र नही मिलता। उसी प्रकार चान्दीका चन्द्रमा बनाकर मस्तक पर रखना और उसे ब्राम्हन को देना चाहीये। अपनी लोहे की प्रतिमा बनाकर देनी चाहीये। भिन्न भिन्न धातुओकी प्रतिमा बनाकर दान करने की विधि है।पुरुश की प्रतिमा काले तिलकी बनानी चाहीये।दात चान्दीके, आख सोनेकी और हाथ मे तलवार होनी चाहीये। लाल वस्त्र परिधान करना चाहीये। शकोकी माला, पैर मे जुता, काला कम्बल ओटे हुए और बाए हाथ मे मास, सोनेके अश्व पर बैटा हुवा होना चाहीये। ऐसा काल पुरुश माना गया है। ब्राह्मन को दासी अर्पन करना चाहीये। ( दासी दत्त्वा हिजेद्राय )। व्रसव पुरान मे ऐसा वर्णन है कि वसव नामका राजा ( जगामास) साधुओको बहुत सी वेश्याए देता था। उस पर हसना व्यर्थ है। स २१२ मे मेरुदान , स २१३ मे प्रुथ्वी दान। स २१४ मे नाडी चक्र। स २१५ मे सन्ध्याविधि, गायत्री, जप,और हवन के सम्बन्ध मे विचार किया गया है। स २१६- २१७ मे गायत्री निर्मान। स २१८ मे राजधर्म का वर्णन। प्राचिन समय मे राज्यभिशेकके समय राजाको प्रतिजा करनी पडती थी कि वह सबके लोगोका पालन पोशन करेगा। ऐसी प्रथा थी कि भिन्न भिन्न जगहोकी मट्टि राजाके प्रत्येक अगको लगायी जाती थी। बिल की मट्टी राजाके कान पर, विश्णु के देवालय की मट्टी राजा के मुह मे लगाई जाती थी। इसी प्रकार अन्य स्थान की मट्टीका भी वर्णन है। जगह जगह की मट्टी का वर्णन करते समय वेश्या के दरवाजे की मट्टी राजाके कमर मे लगाई जानेका उल्लेख है। सब वर्णोसे राजा का अभिशेक हो जानेपर राजाको शीशे और घी मे अपना प्रतिबिम्ब देखना चाहीये। विश्नु आदिका पुजन करना चाहीये। शय्यापर व्याघ्रच्रर्म बिछा रखना चाहीये। पुरोहित को चाहिये कि राजाके मधुपर्क देकर वस्त्र बान्धे। राजा के मुकूट मे पन्चचर्म होना चाहीये। मुकूट धारन करते समय जिस प्रकार आजकल सिपाहियोकि पगडियोमे टोपी दिखाई देती है उसी प्रकार मुकूट मे चर्म बान्धना चाहीये। बैलके, सिहके, वाघके,अथवा चीतेके चर्म पर राजा बैटना चाहीये। इसके उपरान्त व्रान्ण्को दान इत्यादी देकर और अश्व तथा गज की पुजा करके राजमार्ग से राजाकी बारात निकलनी चाहिये।स २१९ मे अभिशेक मन्त्र। इस मन्त्र मे कुछ देव, ऋशि, पर्वत, देश,नदिओके नाम आए है। उनमे बहुत सी नदिओके अपरिचित नाम है। जैसे अछेदा,देविका, वरुणा,निस्छिरा, पारा, रुपा,गौरी,बैतरणी,तथा अरबी इत्यादी। स १११ मे सहायसम्पति अर्थात अधिकारी मन्डल अथवा राजप्रबन्ध के लिये आवश्यक बहिखाते और उनपर अधिकारिओकि योजना। राजाको राज्यभिशेक होनेपर शत्रुओको जितना चाहिये।राजाका सेनापती ब्राह्मन अथवा क्षत्रिय होना चाहिये। कोशाध्यक्षको रत्नो और हिसाब इत्यादि से भलि भाति भिज होना चाहिये। गजाध्यक्षको जितश्रम होना चाहिये। उसे गजपरिक्षा का जान होना चाहिये। उसीन प्रकार घुडसवारिओका मुखिया अश्वशाश्त्र मे निपुन होना चाहिये। किल्ले का अधिकारी होशियार होना चाहिये। वैसेही शिल्पकार अपनी विद्या को पुर्न सिखा हुआ होना चाहिये।मन्त्रि बुद्धिमान होना चाहिये सभाके सदस्य धर्मको जानने वाले रहने चाहिये। यन्त्रमुक्त, पाणिमुक्त,अमुक्त,और मुक्त धारिन् ये चार प्रकार के बाण और शश्त्र छोडने के है। आचारी उपर्युक्त चारो प्रकारोसे भिज होना चाहिये।प्रतिहारि नीतिशास्त्र मे निपुण होना चाहिये। दूत मिटा बोलनेवाला और अति बलवान होना चाहिये। प्रतिशा लिये राजाको जो थोडा देनेके लिये नियत किया जाता था,वह त्रुत्तिय प्रक्रुतिका होता था। सारथि के उपर बहुत बडि जिम्मेदारी होती थि। अत वह पुर्न राज निश्टा होकर सन्धि,विग्रह आदि पड गुणोसे युक्त तथा सेनाधि विशय को जाननेवाला और राजाके रक्षणर्थ तलावार्