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अतरंग निरीक्षण

दशावतार वर्णन अ १ से १६ तक । पहिले अध्यायके प्रथम न्दटोक्रमैं लदमीदृ सरु खत्री, गोरी, गणेश, आज्ञा, ईश्वर ब्रह्मा, वहूँह्र, इन्द्र और वाक्षदेवाविचीका मंगल गाया से। इतने देवताओं का मंगल-गान था उनकी स्तुति का वर्णन इसके अतिरिक्त प्राय: कहीं नहीं दिखायी देता । ऋपिथोंने सूतसे प्रश्न किया कि सासों सार क्या है, वह कहो । तव सूतमे अग्नि-घसिष्ट संवाद कहा । इसी अग्नि-बलिष्ट संत्राद को अग्निपुराण कहते हैं। परा औम अपरा इन दो विद्याओके आधार पर इस पुराण की दचना की गयी है ।ऋचंवेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथाउनके छ: अंगों की शिवा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष; इंददृ मामयेंसा, "प्र८शि।स्त्र, पुराण, न्याय, डाक, गांधवं, धनुर्वेद, अर्थशास्त्र, अपरा। , वृहाप्राष्टिके हूँ। शानचिषयक बचन कहे गये ड्डेहैं यह परा हैं । इस प्रक्रार इस पुराण का हैम ३ हुआ है। दूसरी बात यह है कि यह्मदेय, सृष्टि इन्यादि विषयोंसे पुराण का आरम्म नहीं हुआ है र्वास्क वत्तारचरिचौसे इसका आरम्भ हुआ है । अ० २में मत्ख्यावतायंमैंरिज और अ०३यें कूर्मा- वत्तार का वर्णन है । पद्मपुराण और भरुस्यपुप्लांगृणप्रे ये विषय आये हैं और विपर्योंकै अंदेपाट्यमें और इनमें फरक नहीं है हैं प्रलरिकरचना मात्र भिन्न हे। मुत्स्यपुराणमें कूमरेंव्रत्तार चरित्र का उल्लेख नहीं हैं । अवतार-चरित्रों का प्राय: पुराणोंमें समावेश है । आ ४ में वराह नृसिंह, वामन र्थार परशु- रामके संक्षिप्त चरित्र दिये हैं । अ० ५ में श्रीरामा- वतारके थीवारुमीकि राभायणके जनाकाण्डका संक्षिप्त विचार किया गया है । अ: ६ में रामा यणके अयोध्याकाण्ड, अच्चा ९ में सुन्दर कांड, अ० १० में युद्धकावअ० ११ में उत्तस्कारुड, 'प्तमरावसयोर्युद्ध" राम रावणर्यारिच" वालय सुप्रसिद्ध क्योंकार्ध यहाँ दिया है । यद्यपि यह रामायण संक्षिप्त है तो भी कोई सुप्रसिद्ध कथाझूटी नहीं है । इस रामायणके कुल 'लोकों की संख्या १८१ है । अ० १२ में कृप्यावत्तार ( इसमें आये हुम गोन्तिकानिर्णय किस प्रकार किया जाय यह एक प्रश्व है ) । क्योंकि यहि गोम्ति को आधुनिक गोवा प्रान्त मान लिया जाय तो जरासंध की चढाईसे भयभीत हो श्रीकृष्ण का मधुरा छोड़ कर इतनी दूर भागना संभर्व नहीं है। अन: गोमंत्त एक पर्वनक्रा नाम है इंरैकुं भश्यावतमें उस पर्वत का दूदुक्या नाम हिया हुआ हैं । भपृत्रुत्ताख्यट्वेन अ० १३ । १४ । अप में । तीन अध्यार्याम केवल ७२ ऋठेट्वेक हैं । ५ ३८० १६में घुद्धावनानं ओन" कल्कि अवनार का वर्णन है। दुद्धस्ववाश्चने कथा म्नवैत्र ही हैं। बुद्धावतारकी पौराणिक कथा ऐसी है कि पूर्व समयमे देब दैत्योंके युद्धवै देनोंका पराभव हुआ, त्त ब द्देबोंने वि मृणुभगवानकी प्रार्थना को ओर बिष्णुने युद्धका अवत्तार धारण किया । उस ममय सव दैत्य वैदिक कर्म करने वाले थे र्वाषहृ उनका घर्मसे भ्रष्ट का' उनका पराभव क्रस्नेके हेतु त्रिष्णुभग- बानवे चुद्ध अवतार लिया । इस मन का अनुकष्णहूँदृणने वालेयोंद्ध वहूँदृलाते हे । इसके उपरान्त जेनमत उद्धव हुआ । एगा अनुमान किया जाना है कि जैनमत्तका पुम्बक्तर्वा विष्णु अव- नाषड्डे ही है । आर्दता सं८भबताप्रयदार्ततानकसीपरार 1। ज्जदृष्टि की उन्यत्ति अ० १७ से २॰…अ० १७१३ जषात्की उत्यन्तिका वर्धन है । इसमें व्रह्मासे हिरशूयगर्थ-व्रहा। त्तक्रकी उत्पत्ति दी हुई हैं । इससे सव परिचित । "अपरेंच ममर्तार्दा" यह शोक अन्य पुनाणोंकी तरह यहाँ भी हैं । ( १७-७ ) अव्यक्तव्रदृप्र…प्रकृनि पुठाक्तू अहत्यत्रु अहंकार प्रधान विषय । अर्हकारकै तीन प्रकाकंहैं-वैकारिदृपिं तेजस छोर नामस अहंकत्मा आकाश, वायु तेल, पानी नआ पृथ्यपै, ये नामस अहंक्रश्वकी जिनि । सैजस अर्हक्ताम्मे इछिय ओर वैकारिक अहंकश्यसे इन्धिर्यप्रेके अधिष्टात्र देत्रतातथा मन उन्यन्न हुए । "नसा ग्यग्रंभूकूदैज्वदृ- वान" इस ऋर्दाकार्द्धसे अध्याय समान र्ताने नाके टू खव क्योंक भहाभस्मत्से लिये गये होंगे । क्योंकि टीकाक्रास्का दध्दथन्हे कि दोनों ग्रस्योंके क्योंक क्षचनायें" साध्य हैं । टीकाकार कहना है कि ये ही बुटीक हरिवंश अ० तो में । १८ अध्याय क "स्वायंढट्टूय मनु वंश वर्णन" में _.छ . फरक । पूर्व अध्यार्यतेकी नाह थहहरिवंशमें दै । अतु १ 8 में कश्यप वर्धन ओय' अष्टि २० में जगन्मर्ग ३ दृष्णन हे । आ १७ में निरुपिन किसे गए प्राकृ- नादि तीन सगोंके आगेका वर्णन दिया हुआ है । माँकृट्रॉ सर्गके वृन्द मदृन् भर्ग ( भदृन, से अहंकार - तक ), भूत सा। ( आकम्मासे पृथ्वी नक ) वेका- ट्वे ग्निदृ सर्ग ( भूर्वरेके सृहुप्रन्धसे बना हुआ इन्दिय 3 वर्ग ), ये तीन सर्ग गिने जा । विकृत सर्गहँरै 3 ३313१". निर्थक चीननंनदुअधश्चर्वग्रनननं. ऊध्वरुदृनेनस