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के फूफाने उसे इस बातके लिये पूर्णरुपसे सचेत कर दिया था कि वह शिवाजी से प्रकटमें मित्रता का ही व्यवहार रक्खे। अवसर आने पर छल कपटसे उसे परास्त करे। कदाचित् अफजलखाँ इन सब ध्यान देते हुए शिवजी से एकदमसे खुले मैदान में युध्द नहीं करना चाहता था। अपने फूफाकी सलाहके अनुसार ही वह कोई उपयुक्त अवसरकी ताकमें लगा हुआ था। इन्हीं सब कारणोंसे पहले वह तुलजापुरकी ओर गया। कदाचित् उसने निश्चय किया था कि स्थान-स्थान पर देव मन्दिरोंको भ्रष्ट करता रहेगा। शिवजी इससे उत्तेजित होकर उसके सामने स्वयं ही आ जावेगा। अत:सबसे पहले भवानीके मन्दिर को भ्रष्ट करनेका उसने निश्चय किया। वहाँके पुजारियोंको इसके आगमनकी पहले ही से सुचना मिल चुकी थी। अत: उन्होंने देवीकी प्रतिमाको अन्यत्र छिपा कर रख दी। इस पर वह बहुत झुँझलाया, और एक गौकी हत्या करके उसके रुधिरको मन्दिरमें सर्वत्र छिड़क कर अपना क्रोध शान्त किया। तदनन्तर वह नैऋत्य दिशाकी ओर मुड़ा और पंढ़रपुरके समीप आ धमका। जिस भाँति इसने तुलजापुरमें आचरण किया था वैसा ही उसने घृणित कार्य यहाँ भी किया। भीमा नदी पार करके उसने पुण्डरीक के मन्दिरमें प्रवेश किया। वहाँकी प्रतिमा इसने उठाकर जलमें फेंक दी। तदनन्तर वह माणकेश्वर,करकम , भोंसे,शँभुमहादेव,मलवड़ी तथा रहमतपुरके मार्गसे होता हुआ तथा अनेक मन्दिरोंको नष्ट भ्रष्ट करता हुआ बाँई आया। हृदयमें चाहे सदा ही डरता हो किन्तु दिखलानेके लिये अफजलखाँ सदा ही शिवाजीको को बन्दी बनानेकी डोंग हाँका करता था। बाँई पहुँच कर उसने एक दिन बातही बातमें एक पिंजड़ा बनवानेकी आज्ञा दी और कहा कि शिवजी को जीवित ही पकड़ कर बादशाहके सम्मुख इसी पिंजड़ेमें बन्द करके उपस्थित करुँगा। शिवजी इसके प्रत्येक कार्यका बड़ी सवधानीसे पता लगाये रहते थे। जब शिवजी राजगढ़में थे तभी उन्हें पता चल गया था कि अफजलखाँ उनपर चढ़ाई करने आ रहा है। उन्होंने ऐसी व्यवस्था कर रक्खी थी कि अफजलखाँ इधर उधर ही भटकता रहे और पुना न पहुँच पाये। इसमें उन्हें सफलता भी हुई और वे अवसर पाकर पुरन्दरगढ़से प्रतापगढ़ चल दिये। राजवाड़ेने लिखा है'(ख.१५,लेख ३०२)'कि जिस समय अफजलखाँ छत्रपति शिवजी पर चढ़ाई करनेके विचारसे बढ़ा आ रहा था। उस समय रोहिडखोरा देखमुख खण्डोजी खोपड़ेने विदेशीका भेष बदल कर अफजलखाँसे भेंट की और कहा कि वह शिवाजीको पकड़वा देगा। इधर शिवाजी का सरदार विश्वासराव नानाजी मुसेखोरेकर फकीरके भेषमें बराबर अफजलखाँ की छावनीमें जाया करता था तथा उसको हरएक करवाईका पता रखता था। अत: शिवाजी को अफजलकी ईच्छाका पूरा पूरा पता था। बाँई पहुँच कर अफजलने वहाँके पटवारी कृष्णाजी भास्करको मिलनेके लिये अपने पास बुलवाया और कहा कि वह मित्रभावसे शिवाजीसे मिलनेके लिये उत्सुक है। कृष्णाजी भास्कर शिवाजी से मिला और उसने खाँका आदेश शिवाजीसे कह सुनाया। उसने अफजलखाँकी ओर से यह भी सन्देशा कहा कि अफजलखाँ शिवाजीको बीजापुर के दरबारसे उसके पुर्व अपराधोंके लिये क्षमा दिलवा देगा और जिस देश पर अब तक उसका आधिपत्य है वे सब भी नियमानुसार उसके अधीन करा देगा। शिवाजी भी बड़ा भारी कूटनीतिज्ञ था। उसने भी चटसे अफजलखाँ से मुलाकात करना स्वीकार कर लिया, किन्तु बाँई तक जानेका उसे साहस नहीं होता अत:यदि अफजलखाँ जाबली तक आनेका कष्ट करे तो वह भेंट करने आ सकता है। कृष्णाजी भास्करको शपथ दिलाकर शिवाजीने पुछा कि अफजलखाँका भीतरी अभिप्राय क्या है और क्या वह शिवाजी के साथ छल कपटका व्यवहार नहीं कर रहा है क्योंकि शिवाजीको अपने दूतों द्वारा ऐसा ही समाचार मिला है। कृष्णाजीने भी तब सब हाल कह दिया और कहा कि अफजलसे बड़ी सतर्कतासे ही मिलना उचित है। अफजलखाँ अवश्य कोई न कोई छल करेगा। शिवाजी को जब अफजलखाँके नीच विचारोंका पूर्ण रुपसे विश्वास हो गया तो उसने भी दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह भी खाँको उसीके बिछाये हुए जालमें फँसाकर नाश करेगा। अत: पणतोजी गोपीनाथ नामक अपने एक नायकको शिवाजीने अफजलखाँके पास दूत बनाकर भेजा और कहला दिया कि वह खाँसे बड़ी प्रसन्न्ता पूर्वक १५ दिन बाद प्रतापगढ़में भेंट करनेको प्रस्तुत है ,उसी समय समझौताकी भी बातचीत हो जावेगी। इधर शिवाजीने अपने आदमियों से जंगल