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प्रदेशोंमें ग्रीष्मऋतुमें भारतके ही समान गर्मी भी पड़ती है। ग्रीष्म ऋतुमें यहाँ एक प्रकारकी मक्खियाँ होती हैं। जिनसे बड़ा कष्ट पहुँचता है। इनके दाँतोँमें विष होता है। कभी कभी तो इनके काटनेसे घोड़े तक मर जाते हैं। ऊँःठों को भी ये हानि पहुँचाती हैं। बहुधा ये सेस्तितान में ही होती हैं। पहाड़ी प्रदेशोँमें शीतकालमें बड़ी तीव्र सरदी पड़ती है किन्तु ग्रीष्मऋतुमें यहाँकी आबहवा बड़ी रोचक तथा उत्तम होती है। सदा शीतल वायु बहा करती है।

   प्राचीन इतिहास-ऐसा अनुमान किया जाता है कि प्राचीन बल्ख अथवा बैक्ट्रिया मध्यएशियाकी सबसे प्राचीन राजधानी रही होगी, और जर-तुष्ट्र  (Zoroaster) ने यहीं धर्मोपदेश किया था। बैक्ट्रिया अकेमीनियन सम्राज्य का एक मुख्य प्रान्त था और ईरानी वंशके लोग यहाँ पहले रहते थे। ईसासे लगभग २५० वर्ष पूर्व बैक्ट्रिया सिल्युकिड (Seleucidae) के आधीन था। इस समय  इस प्रान्तका अधिकारी थियोडोटस था। उसने स्वतन्त्रताकी घोषण कर दी। इसी से ग्रीको-वैक्ट्रियन (Greco-Bactrian) नामक राजघरानेकी नींव पड़ी। चाहे यह जर्क्सीस का समकालीन रहा हो किन्तु किसी समय में इस वंशका राज्य कच्छकी खाड़ी तथा जरक्सीसके राज्यकी सीमा तक फैला हुआ था। लगभग १२६ वर्ष ईसाके पूर्व पार्थिया तथा अन्य अनेक मध्य एशियाकी जातियों ने इस पर आक्रमण आरम्भ कर दिये,जिससे यूनानी शासनका अन्त हो गया। उस समय आक्सस नदीकी तरेटीमें अनेक राज्योंका प्रादुर्भाव हुआ। इनमेंसे मुख्य युएची केशवंग,येथा,तुखारा,कुशन,हैथाली,हुण इत्यादि थे। इस समय यहाँ पर बौध्द्-धर्म का सबसे अधिक प्रचार था। बल्ख्में एक बहुत बड़ा बौध्द्-मठ था जो नव-विहार के नाम से विख्यात है। इस समय वहाँ पर केवल एक छोटा सा देहात है। इसलाम-विजयका वर्णन करने वाले अरब इतिहासकारोंने भी इसका वर्णन किया है। आज भी यह हिन्दू-धर्मकी उन्न्ति का स्मारक है। हान्स्टाङ्ग नामक प्रसिध्द चीनी यात्रीने कितने ही स्थानोंका वर्णन किया है और बुध्द्-धर्मका प्रचार सर्वत्र सबसे अधिक बतलाता है। हैथाला अथवा तुखारिस्थान जिससे मुसलमान भली भाँति परिचित थे,चिङ्गेजके आक्रमणके समयमें अनेक अन्य छोटे मोटे राज्योंकी भाँति सत्यानाश कर डाला गया। उसके बाद भी इसपर अनेक आक्रमण समय समय पर होते रहे। इन आक्रमणोंके बाद यह कभी भी उन्नति न कर सका,क्योंकि इन आक्रमण-कार्योंने केवल देशको विजय करके ही नहीं छोड़ दिया था किन्तु उसे पूरी तौर से लूट करके स्थान   स्थान पर आग लगा देते थे। अतः प्राचीन सभ्यताका कोई भी चिन्ह आज नहीं देख पड़ता। लगभग एक शताब्दी तक यह प्रान्त देहलीके मुगल सम्राटोंके हाथमें भी रहा। तदनन्तर इसपर उजबकोंका फिर प्रभुत्व हो गया। ईसाकी १८वीं शताब्दीमें यह प्रान्त अहमदशाह दुर्रानीके हाथ आ गया था किन्तु इसकी मृत्युके पश्चात् इसका पुत्र तैमूर इसे सम्हाल न सका,और यह फिरसे उजबक सरदारोंके हाथमें आ गया। इन सबोँमें कुन्दुजके कठगान बहुत दिनों तक प्रधानत्व प्राप्त किये रहे। इनका सरदार मुरादबेग (१८१५-१८४२ ई० तक) आक्सस नदी के पार काबुल तक तथा दक्षिणमें बल्खसे पामीर तक शासन करता रहा।
किन्तु १८५० ई० से अफगानिस्तानने इन प्रदेशों पर विजय प्राप्त करना आरम्भ कर दी और धीरे धीरे दस वर्षमें (१८५६ ई० तक) इस पर पूर्णरूपसे अधिकार प्राप्त कर लिया। १८७२ व ७३ ई० में जो अफगानिस्तान तथा रूसमें पत्र व्यवहार चल रहा था उससे आक्सस नदी तक अफगान राज्य समझ जाने लगा था।

प्राचीन स्मारक- यद्यपि यहाँ प्राचीन सभ्यता बहुत दिनों तक थी तथा बौध्द्-कालमें यह उन्नति के शिखर पर पहुँचा हुआ था किन्तु चिङ्गेजखाँ तथा उसके बादके आततायियाने इस प्रदेशको बिल्कुल नाश कर डाला जिससे उस समयके कोई स्मारक नहीं देख पड़ते। जो कुछ थोड़े बहुत उस समयके चिन्ह अथवा अवशेष देख पड़ते हैं उनमें सबसे मुख्य तथा महत्वकी बेनियमकी गुफायें हैं। सयदाबादके किलेका भी अवशेष मिलता है। हैवकमें भी अनेक प्राचीन गुफायें हैं। यद्यपि बल्खमें अभी तक तो कुछ भी नहीं मिला है किन्तु उसके इतिहास पर ध्यान देने से आशा की जाती है कि खुदाई होने पर यहाँ भी पुरानी सभ्यताके अनेक चिन्ह प्राप्त होंगे। जनरल फेरियरने हजारा प्रान्तमें बड़ी कारीगरीके पत्थर के नमूने देखे थे। इन्हीं चट्टानों पर अनेक अन्य महत्वकी चीजे भी देख पड़ती हैं। सारांश यह कि यद्यपि अभी तक विशेष चिन्ह तथा स्मारक नहीं प्राप्त हो सके हैं किन्तु आशाकी जाती है कि